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कर्कशा स्त्री
एक आदमी रे तकदीर घणों लिखियोड़ो होवे, मेहनत कम करे तो विने ज्यादा मिल जावे। पर एक आदमी बिचारों मेहनत तो करे घणी तो फल मिले थोड़ा। ओ ही ज कारण है तकदीर रो जको मन एक बात याद आयगी। क एक छोटे सक गांव में ब्राह्मण और ब्राह्मणी हा। ब्राह्मण बिचारों दिन उगतो रे बिचारो आटो लेवण ने जावतो तो ब्राह्मण एक गांव सूं दूसरे गांव में जावतो पण वो सुबहू शिय्या तई घूमतो फिरतो पण विणे कर्मा में तो सरे बेकाड़ी ही लिखियोड़ी ही तो ब्राह्मणी पर आवंता ही लड़ाई झगडा करणे लाग जावती। पण ब्राह्मण बिचारों करे तो कांई करे। घणो ब्राह्मणी केवती तो बिचारो ब्राह्मण करें तो कांई करें। घणों ब्राह्मणी केवती तो बिचारो ब्राह्मण चार पांच गांव जार आ जाव तो। तोई ब्राह्मण रो तो झगड़ो अएगो हुतों ही कोनी वा तो रोज री लड़ाई करती। थे तो फिरो ही कोनी, थाणों फिरणों खारो ही लागे। फिर बिना धाणे कूण टुकड़ा घाली, आय बैठग्या खावण ने। फिरणो लागे दोरो। बिचारो ब्राह्मण तो दुखी हुग्यों, पण करें तो कांई करे। यू करता करतां वी ही गांव रे मायने राजा रे पुत्र राज कुमार रे गलेर गांठ हुईगी। तो राजा दुःखी हुग्यो। डाक्टर वैद्य रा तांता लाग्या तो ही राजकुमार री गांठ में शांति नहीं आई। जणा राजा बिड़लो फिरायो क राजकुमार री गांठ से कोई इलाज करे जिने मन मानयोधन दियो जाई। ओ बिड़लो वा ब्राह्मणी सुण्यो, सुणताई दौड़ बारे आई और बिड़लो फेरण वाला ने हे को मारयो केवे ओ ब्राह्मण तो घणोई जाणकार है। इण ने ले जावो और राज कुमार रे जाडो दिखावों। यूं केवता ही बिचारो ब्राह्मण कांपने लाग्यो। ब्राहमणी तो बस बिड़लो फेर जका रे लारे ही वी ब्राह्मणी ने कर दियो। बिचारों ब्राह्मण राज में पूग्यो। महला में राजकुमार सोयो जठे, ब्राह्मण पूग्यो और अब कोई उपाय सोच्यो। सोचने ब्राह्मघूसगला ने महला माहू निकाल दियो। और अग्नि घी लेप दूप करियो और माचा रे आरे-बारे धूमण लाग्यो, ने जोर-जोर नी बोलने लाग्यो। जाणू नहीं पिचाणू नहीं कर्कशा ने पूगू नहीं। (बिचारो ब्राह्मण जाणे तो की है कोनी तो ओ ही उपाय हाथ में आयो)। य राजकमार विचार करे क रोज झाड़ा जादू मंत्रा, डोरा तो घणाई कराया पण इस्या तो कोई नी बोल्या, पणओ तो अजब-गजब रो ही झाड़ो लगा रहयो है। यूं राज-कुमार विचार करे। गाँठ भी पाकीगी, वो राजकुमार जोर यू हास्यो। हंसता ही गांठ फूटी, गांठ फुटता ही सबने काई करियो बुला लियो। मलम पाटी कराई और राजकुमार ने कांई क शांति आयगी, जणा राजा और अनुचर वीरो मान घणाई बढ़ाय रियो।
अबे वो ब्राह्मण राजी खुशी राज में रेवे। खाणो पीणो करे, आनन्द में रेवे, तो एक दिन ब्राह्मण राजा के केवे- अब आप छुट्टी करो। मणे काई म्हारें घरे जाणो है। जणा राजा खूब ठाट { हाथी पर बैठाण, जय जय कार करता हंता ब्राह्मण री गली में आवण लाग्यो। ब्राह्मणी चोंक ने उठी क देखू तो सही किरो मेलो आ रहयो है। बारे आई ब्राह्मणी देख्यो क काई यारो हल्लो हुई रयो है। आगे बारे देख्यो, देखता ही सोच्यो ऐ तो म्हारा ही भरतार है । जाऊं मायके। थाली कर कलयाऔर चावल आदि सब सामग्री लेयन आई और बंधावण करया और घर में बंधाया ने लीपा पेछे के वे बस अब तो ज्यो करने घालू बैठा रही खावो। जणा बाह्मण विचार करे कल राज में भेज तैयार हुयगी थी। पर आज जणा धन दियो तो ब्राह्मण रा बारणा हुण लाग्या और घर बुरो नहीं हो जणा ब्राह्मण खारो लागतो हो बस ओ ही तो कर्कशा लुगाया रो काम रे। लुगाया रे खातिर विचार मनख मजबूर होय जावे। पण करे तो कोई
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