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वह अंगुली पर जैसे हर दिन गिनता था। विरही पंछी ने विरह रागिनी गाई॥
मन भटक-भटक कर कोई वर चुनता था॥ सब कुछ पल भर में बदल गया अनहोना। एक दिन उसकी यह आशा हो गई पूरी हो गया शून्य. सा मन का कोना-कोना ॥
बचपन की गड़िया बनी किसी की गोरी ॥ जीवन साथी को पथ में छोड़ अकेला। एक ओर दृगों में था वियोग का पानी। भण्डारी, दूर चला तज नाग का मेला ॥
था वही छिपा आनंद कि वह थी रानी॥ अनचाहे सुख मिलते दुःख भी मिलते है। राजा-रानी दोनों हंसते मुस्काते।
कण्टको कित डाल पर फूल मधुर खिलते है ॥ कुछ गीत खुशी के गाते शर्मा जाते॥ कान्हा का जीवन बना जलन की छाया। भण्डारी घासीलाल बने थे दुल्हा।। सब ओर निराशा ने साम्राज्य जमाया।
दुलहिन कान्हों का हृदय खुशी से फूला॥ वह हुई सजग जैसे कोई जागा हो। दुल्हा दुलहिन की जोड़ी मधुर सुहाई। भ्रम, तन, मन अम्बर से जैसे भागा हो ॥
सबके आंखों की पुतली बन कर छाई॥ शाश्वत जीवन की ज्योति अमर होती है। खुशियां आंगन में आकर नाची छमछम। पथ को जग-मग करती तम को खोती है।
दो हृदयों का यह मिलन मधुरता का क्रम॥ मेरा शाश्वत स्वाधीन स्वयं है ज्ञानी । विधि को यह मिलन न फूटी आंखों भाया। मुझ में अन्तर्हित मेरा अन्तरयामी ॥
लुक छिप करके अवसाद कहीं से आया ॥ देखू न नयन से उसे ज्ञान से तोलूं . है जहां उजेला तिमिर वहां पलता है। इस जन्म मरण के सारे कल्मष घोलू ॥ जलती बाती निशंक नेह का हृदय वहां
है क्षणिक सभी संयोग बिछुड़ जाते है। जलता है ॥
मिलते हर्षाते जाते कलपाते है। है भरी मिलन में विरहानल सी ज्वाला। आखिर ये पर है, पर ही सदा रहेंगे।
हिमने विनाश को अपने भीतर पाला॥ मेरे अनुशासन में ये नहीं रहेंगे ॥ आशा की छाती में छलना की पीड़ा।
ये माता-पिता सुत सारे झूठे बन्धन क्रीड़ा के पीछे दौड़ रही है क्रीड़ा ॥ ये बिछुड़ हृदय में भर देते है क्रन्दन दो दिल नूतन स्वप्निल संसार बसाने
कौन मरण के बाद साथ जाता है। पथ पर आये गाते से प्रेम तराने ॥
कोई पग दो पग, मरघट पहुंचाता है। मद माते पग पग में ऐसे पड़ते थे
घर वाली घर के द्वार खड़ी हो रोती। दो दिवाने मंजिल खुद ही गढ़ते थे। आंखो के मोती शून्य घटा में बोती ॥ था पता न बढ़ना ही पीछे हटना है।
मरघट तक भाई बन्धु साथ है जाते। बंद-बूंद का जीवन ही उसका मिटना है ॥ रच चिता लगाकर आग फूंक कर आते ॥ सन्ध्या जीवन की सहसा कैसे आई।
.. मिट्टी का पुतला मिट्टी में मिल जाता।
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