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1 महासती जी ! क्या कष्ट हो तभी दीक्षा लेनी चाहिए?" प्रति प्रश्न करते हुए चम्पाकुमारी ने आगे पूछा- “क्या ये सांसारिक भोग कष्टप्रद नहीं है? इससे बढ़कर संसार में और क्या दुःख हो सकता है?"
महासती जी विस्मयाभिभूत होकर यथार्थ बात को सुन रही थी। बात सत्य थी किन्तु इसका विवेचन ऐसे मुख से हो रहा था जिस मुख से ऐसी अपेक्षा कोई कर ही नहीं सकता था। यौवनवय की ओर कदम रखा ही था, सम्पत्तिशाली की बेटी, श्रीमंत परिवार की बहू, सभी की प्यारी ऐसी चम्पाकुमारी के मुख से निकले दीक्षा के ये शब्द क्या आश्चर्यजनक नहीं थे?
महासतीजी ! आप मौन क्यों है? क्या मैं इस मार्ग के योग्य नहीं हूँ ?” महासती जी को विचारमग्न देख कर चम्पाकुमारी ने पुनः प्रश्न किया।
__"ऐसी बात नहीं है। हमारा लक्ष्य आत्म साधना है। इस साधना में असीम और सच्चा आनन्द भरा है। कोई भी मुमुक्षु यदि मार्गदर्शन मांगे तो इस मार्ग का यथार्थ दर्शन कराना हमारा कर्तव्य है। तुम भी यदि इस मार्ग पर आना चाहो तो हमें क्या आपत्ति हो सकती है। पर जानती हो खांडे की धार पर चलना सरल है किन्तु संयम मार्ग पर चलना कठिन है। जो मुमुक्षु संसार के बंधन काटना चाहता है तो ये बंधन उसे दुगुनी शक्ति से जकड़ते हैं। यह एक प्रकार की बला है जिसकी पकड़ से छूट पाना जितना सरल तुम समझ रही हो उतना सरल नहीं हैं। समाज में अनावश्यक रूप से विद्रोह की स्थिति उत्पन्न होगी। तुम्हारी परेशानी बढ़ेगी और हमारी निंदा होगी। इतना सब कुछ होने पर भी कुछ सार्थक परिणाम नहीं निकलेंगे। इससे तो अच्छा यही है कि तुम अपने घर में रह कर ही आत्म साधना करो।” महासती जी ने चम्पाकुमारी को समझाते हुए कहा।
__ “आपका फरमाना ठीक है। मैं साध्वी बनकर आत्म साधना करना चाहती हूँ। आप तो केवल इतना बताने की कृपा करें कि मैं इसके लिये योग्य हूँ अथवा नहीं। आगे आने वाली कठिनाइयों की चिंता
आप नहीं करें। परिस्थिति के अनुसार मैं स्वयं उनको संभाल लूंगी। कृपा कर मैं आपसे जो जानना चाह रही हूँ वह बताने की कृपा करें। चम्पाकुमारी ने पूछा।
___ “यदि तुम्हारे परिवार वाले तुम्हें संयम ग्रहण करने के लिये अनुमति प्रदान कर देते हैं तो मैं सहर्ष तुम्हें संयम प्रदान करूंगी। उनसे कहना, अनुमति लेना आदि कार्य तुम्हें ही सम्पन्न करना है। यह हमारा कार्य नहीं है।" महासती जी ने मार्गदर्शन प्रदान कर दिया।
__ “संयम ग्रहण करने के लिये पारिवारिक आज्ञा के लिये मैं आपसे किसी प्रकार की सहायता नहीं मांगूंगी । मुझे अपनी योग्यता के संबंध में आपसे अपना अभिमत चाहिए था, जो मुझे मिल गया। शेष कार्य तो मैं स्वयं ही पूरा कर लूंगी।' चम्पाकुमारी ने कहा और वंदन कर जाने लगी।
“जाओ, गुरूदेव तुम्हें अपने लक्ष्य प्राप्ति में सफलता प्रदान करें। स्मरण रहे कि परिवार से आज्ञा इस रीति से मांगना कि समाज में तुम्हारी अथवा हमारी निन्दा का प्रसंग उपस्थित न हो।" महासती जी ने कहा।
“आपसे समागम से पूर्व ही मेरे विचार ऐसे थे। आपके प्रवचनों से आपसे विचार विमर्श करने से मेरे पूर्व विचारों में और अधिक दृढ़ता आई है। मेरी भावना में प्रकाश भरा हैं, जो अब अंधकार नहीं बन सकता।" चम्पाकुमारी ने कहा।
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