________________
का जन्म हुआ था। श्रीकृष्ण का एक नाम कन्हैया अथवा कान्हा भी है। इस बात पर विचार कर माता-पिता तथा परिवार के सदस्यों ने आपका नाम कानीबाई रखा। सर्वांग पूर्ण एवं गौर वर्ण वाली कानीबाई की किलकारियों से सुराणा परिवार का घर आंगन गूंज उठा। चंद्रमा की कला की भांति बढते हुए कानीबाई अपनी आयुष्य के छठे वर्ष में प्रवेश कर गई। आघात
जिस समय बालिका कानीबाई की आयु छ: वर्ष हुई, उस समय प्लेग की बीमारी फैली। प्लेग की यह बीमारी सुराणा परिवार के लिए बहुत बड़ा संकट लेकर आई। अबोध बालिका न जन्म का अर्थ समझती थी और न मृत्यु का। इस बीमारी के कारण कानीबाई के माता-पिता दोनों ही काल कवलित हो गए। आपकी माताजी का स्वर्गवास अष्टमी की सांयकाल हुआ और नवमी को प्रातःकाल पिताश्री भी परलोकवासी हो गए। इसे आश्चर्य कहें, भाग्य की लीला कहें या युगलियों का घटनाक्रम कहें। कुछ भी, यह घटना कुचेरा वासियों के लिये विस्मयकारी अवश्य थी। अबोध बालिका के लिये माता-पिता दोनों का एक साथ परलोक गमन कर जाना बहुत बड़ा आघात था। किंतु वह कुछ समझ नहीं पायी। सूनी सूनी आंखों से वह केवल देखती रही। इस संबंध में पूछे तो क्या और किससे?
दुःखद वियोग की इस घड़ी में ज्येष्ठ भ्राता श्री फूसालालजी सुराणा ने कानीबाई और परिवार को सम्भाला, अब इस परिवार का समस्त उत्तरदायित्व ज्येष्ठ होने के नाते श्री फूसालालजी के कंधों पर आ गया था। उन्होंने असमय आये इस उत्तरदायित्व से मुहं नहीं मोड़ा वरन अपना कर्तव्य समझ कर इसका पालन किया। समय व्यतीत होता गया और कानीबाई का आयुष्य भी बढ़ता गया। विवाह
धीरे धीरे कानीबाई ने किशोरावस्था में प्रवेश किया। उन दिनों लड़की का विवाह कम आयु में ही कर दिया जाता था। किशोर अवस्था में आते ही ज्येष्ठ भ्राता श्री फूसालालजी को अपनी बहन के विवाह की चिंता हुई और थोड़े ही परिश्रम से विवाह संबंध निश्चित हो गया तथा शुभ मुहूर्त में कानीबाई का विवाह श्रीमान घासीलालजी भंडारी के साथ कर दिया। दोनों की जोड़ी बहुत ही सुंदर थी। देखने वाले भी अंतरमन से प्रशंसा करते थे। विवाह सूत्र में बंधने के पश्चात् आपका समय सुखपूर्वक व्यतीत होने लगा। नये परिवार में कानीबाई को भरपूर स्नेह एवं प्यार मिला। इस परिवार में आकर आप अपने माता-पिता के समान वात्सल्य एवं स्नेह पाकर प्रसन्न हो गई। किंतु कहा गया है कि सुख के दिन क्रूर काल को अच्छे नहीं लगते है। यही कानीबाई के साथ भी घटित हुआ। वज्राघात
कानीबाई के विवाह को लगभग दो वर्ष ही बीते होंगे कि क्रूर काल ने अपने पंजे फैला दिए। क्रूर काल कानीबाई का सुख सह नहीं पाया। लगभग दो वर्ष के वैवाहिक जीवन के पश्चात् श्रीमान घीसालालजी भंडारी अचानक काल कवलित हो गए। कानीबाई का अभी पूर्ण यौवन खिल भी नहीं पाया था कि उनका सौभाग्य उजड़ गया। वैधव्य क्रूर अट्टहास करता हुआ उनके सम्मुख आकर खड़ा हो गया। वे इस अप्रत्याशित घटना से हक्की बक्की रह गई। निरंतर अश्रु बहाने के अतिरिक्त कानीबाई को कुछ समझ ही नहीं आ रहा था। अल्पवय में ही वैधव्य का मुहं देखना पडा। वाह रे काल तुझे तनिक भी दया
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org