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इस कार्य के लिये कभी मना नहीं करना चाहिये। आप केश लोच इतनी सरलता और सुगमता से किया करती थी कि केश लोच करवाने वाली साध्वी को पता ही चल नहीं पाता था। उल्टे केश लोच करवाने वाली साध्वी को नींद सी आने लगती थी। आपने अनेक साध्वियों का केश लोच किया। एक बार की बात है कि आप गौचरी करके उठे भी नहीं थे कि एक सतीजी ने कहा "महाराज सा. क्या आप मेरा लोच कर देगे?" सतीजी के इन शब्दों को सुनकर आप उसी समय गौचरी करके उठ गए ओर लोच किया। इस प्रकार आपकी सेवा भावना पर जितना भी लिखा जावे कम हैं। सेवा करने के अवसर की खोज में आप सदैव रहती थी। सेवा कार्य का अवसर आने पर आप सेवा करने में चूकती नहीं थी। सेवा में आप छोटे बड़े सभी को समान समझती थी और पूरे स्नेह भाव/प्रेमभाव से सेवाकार्य करती थी। स्वाध्याय में जागृति :
स्वाध्याय मन को विशुद्ध, निर्मल बनाने का एक श्रेष्ठ उपाय है। अपना अपने ही भीतर अध्ययन, आत्मचिंतन मनन ही स्वाध्याय है। सतशास्त्रों का मर्यादापूर्वक पढ़ना विधि सहित श्रेष्ठ पुस्तकों का अध्ययन करना स्वाध्याय हैं। आचार्यों ने स्वाध्याय शब्द के अनेक अर्थ किये है। यथा - अध्ययन अध्यायः शोभनो अध्यायः स्वाध्यायः
सु-अध्याय अर्थात् श्रेष्ठ अध्ययन का नाम स्वाध्याय है। कहने का अर्थ यह है कि अन्य कल्याणकारी पठन पाठन रूप श्रेष्ठ अध्ययन का नाम ही स्वाध्याय है।
आचार्य अभयदेव ने 'सु' 'आडू' और अध्याय 'सु' का अर्थ सुष्ठ-भलीभांति 'आङ्' मर्यादा के साथ तथा अध्याय, अध्ययन करने को स्वाध्याय कहा है।
स्वयं द्वारा स्वयं का अध्ययन करना भी स्वाध्याय है। स्वेन स्वस्य अध्ययनं :
वैदिन विद्वान के अनुसार किसी अन्य की सहायता के बिना स्वयं ही अध्ययन करना अध्ययन किये हुए का मनन और निदिध्यासन करना। अन्य प्रकार से “अपने आपका का अध्ययन करना, साथ ही यह चिंतन करना कि स्वयं का जीवन उन्नत हो रहा है या नहीं।"
स्वाध्याय के प्रकार :- स्वाध्याय के पांच प्रकार इस प्रकार बताये गये है।
वाचना :- संद्गुरुवर्य से सूत्र पाठ लेना और जैसा उसका उच्चारण करना चाहिये उसी प्रकार उच्चारण करना वाचना है। वाचना में सूत्र के शब्दों पर पूर्ण ध्यान दिया जाता है। हीनाक्षर, अत्यक्षर, पदहीन, घोष-हीन आदि दोषों से पूर्ण रूप से बचने का प्रयास होता हैं।
पृच्छना :- सूत्र और उसके अर्थ पर भलीभांति खूब तर्क वितर्क चिंतन मनन करना चाहिये और जहां पर शंका हो उसका समाधान गुरुदेव से पूछकर करना चाहिये। यहीं पृच्छना है।
परिवर्तना :- एक ही सूत्र को बार बार गिनना परिवर्तना है। इससे पढा हुआ ज्ञान विस्मृत नहीं होता है। ___अनुप्रेक्षा :- जिस सूत्र की वाचना ग्रहण की है, उस पर तात्विक दृष्टि से गंभीर चिंतन करना। अनुप्रेक्षा से ज्ञान में चमक दमक उत्पन्न होती है।
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