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पूजने के लिये नहीं, शास्त्र पढ़ने के लिये है । पूजने के लिये नहीं, मंजिल चढ़ने के लिये है ॥ पूजने के लिये नहीं, मानव आगे बढ़ने के लिये है। पूजने के लिये नहीं, ये मोक्षकी ओर बढ़ने के लिये है ॥
आपने अपने जीवन का प्रत्येक पल साधना और स्वाध्याय में व्यतीत किया और अंतिम समय भी आपने स्वाध्याय में ही बिताया।
संयम यात्रा :- किसी कवि ने कहा है
तूफान
से।
न घबराये आँधी और न घबराये अज्ञान अंधकार से ||
न घबराये संयम में तिरस्कार से । न घबराये संयम में परिषहों की झंकार से ॥
गुरुवर्या महासती श्री कानकुवंरजी महाराज का जीवन भी ऐसा ही था। अपनी संयम यात्रा में आगे बढ़ने से आप कभी घबराये नहीं । आपने संयम यात्रा में आने वाली किसी भी कठिनाई की चिंता नहीं की और सतत् आगे बढते ही रहे। आप जहां भी पधारे वहीं आपने धर्म ध्वजा फहराई। जिस प्रकार माली अपने उद्यान के पौधों के एक-एक पत्ते का ध्यान रखता है और उनकी रक्षा करता है, उन्हें हरा भरा बनाये रखने के लिये सदैव प्रयत्नशील रहता है, ठीक उसी प्रकार गुरुणी मैया भी अपने संयम के प्रति सतत् जगरुक रहती थी। समिति गुप्तियों का पालन करती थी। दीक्षोपरांत आपका विचरण भी बहुत हुआ । मारवाड़ में विचरण करते हुए आपने धर्मोपदेश की पावन गंगा प्रवाहित की । अनेक चातुर्मासों में अपनी प्रवचन कला से आपने भव्य आत्माओं को जागृत कर अपने गुरुदेव का नाम उज्ज्वल किया।
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एक समय की बात है कि गुरुदेव की सेवायें ब्यावर श्री संघ की विनती हुई । गुरुदेव ने गुरुणी मैया की प्रशंसा करते हुए फरमाया कि ब्यावर के लिये मैं महासती श्री कानकुवंरजी म.सा. की स्वीकृति देता हूं और इसके साथ ही गुरुदेव ने गुरुणी मैया को भी आज्ञा प्रदान कर दी । गुरुदेव की आज्ञा शिरोधार्य करते हुए गुरुणी मैया का चातुर्मास हेतु ब्यावर पदार्पण हुआ । ब्यावर श्री संघ ने उत्साहपूर्वक समारोह के साथ धूमधाम से आपका नगर प्रवेश करवाया । चातुर्मास में धर्म ध्यान का ठाट लग गया। इस वर्षावास में आपकी प्रतिभा संपन्न सुयोग्य परम विदुषी शिष्या महासती श्री चम्पाकुवंरजी म.सा. के सारगर्भित प्रवचन होने लगे। प्रवचन पीयूष का पान करने के लिये श्रोताओं का समूह उमड़ पडता था। प्रवचन में लगभग दो हजार श्रोताओं की उपस्थिति प्रायः प्रतिदिन रहती थी । परम विदुषी महासतीजी बड़े ओज और बिना लाउड स्पीकर की सहायता के प्रवचन फरमाते थे। आपके प्रवचन के समय श्रोता पूर्ण तन्मय होकर प्रवचन श्रवण का लाभ प्राप्त करते थे। कहीं भी जरा सी भी हलचल इस अवधि के दिखाई नहीं देती थी प्रवचन लगभग दो घंटे तक चलता था भगवान महावीर के सिद्धातों का अपने प्रवचनों के माध्यम से परमविदुषी, कुशल प्रवचन कर्त्री महासती श्री चंपाकुवंरजी ने कुछ इस प्रकार प्रचार किया कि उसकी सौरभ आज भी अनुभव की जाती है ।
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