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(१) छन्दा :- स्वयं की या दूसरों की इच्छा से ली जाने वाली प्रव्रज्या। (२) रोषा :- क्रोध में ली जाने वाली दीक्षा। (३) परिधुना :- दरिद्रता के कारण ली जाने वाली दीक्षा। (४) स्वप्ना :- स्वप्न के निमित्त ली जाने वाली दीक्षा। (५) प्रतिश्नुता :- पहले की गई प्रतिज्ञा के कारण ली जाने वाली दीक्षा। (६) स्मारणिका :- जन्मान्तरों की स्मृति हो जाने पर ली जाने वाली दीक्षा। (७) रोगिणिका :- रोग का निमित्त मिलने पर ली जाने वाली दीक्षा। (८) अनादृत :- अनादर होने पर ली जाने वाली दीक्षा। (९) देव संज्ञप्ति :- देव के द्वारा प्रतिबुद्ध होकर ली जाने वासी दीक्षा। (१०) वत्सानुबंधिका :- पुत्र के अनुबंध से ली जाने वाली दीक्षा। इसके अतिरिक्त दीक्षा ग्रहण करने के अन्य कारण भी बताये गये है । यथा :(९) इहलोक प्रतिबद्धा :- इहलौकिक सुखों की प्राप्ति के लिये ली जाने वाली दीक्षा। (२) परलोक प्रतिबद्धा :- पारलौकिक सुखों की प्राप्ति के लिये ली जाने वाली दीक्षा।
(३) उभयतः प्रतिबद्धा :- दोनों लोकों के सुखों की प्राप्ति के लिये ली जाने वाली दीक्षा। तीन अन्य कारण
(१) पुरताः प्रतिबद्धा :- दीक्षा लेने पर मेरे शिष्य आदि होंगे, इस आशा से ली जाने वाली दीक्षा।
(२) पृष्ठतः प्रतिबद्धा :- स्वजन आदि से स्नेह का विच्छेद न हो, इस भावना से ली जाने वाली दीक्षा।
(३) उभयतः प्रतिबद्धा :- उपर्युक्त दोनों कारणों से ली जानी वाली दीक्षा। तीन अन्य कारण (१) तोदयित्वा :- कष्ट देकर ली जाने वाली दीक्षा। (२) प्लावयित्वा :- दूसरे स्थान में ली जाने वाली दीक्षा।
(३) बाचयित्वा :- बातचीत करके ली जाने वाली दीक्षा। प्रकारान्तर से तीन और प्रकार -
(१) अवपात प्रव्रज्या :- गुरु सेवा से प्राप्त। (२) आख्यात प्रवज्या :- उपदेश से प्राप्त।
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