________________
___ जैसलमेर-वासी जैन-बंधुओं में से कुछेक ने जोधपुर में मुनि श्री जयमल जी के प्रवचनों को सुना था। उन्होंने पूज्य भूधर जी महाराज से प्रार्थना की कि “जैसलमेर में यतियों का जोर हैं। तंत्र-मंत्र, जादू-टोना, बाह्राडम्बर, शरीर-सुख, भौतिक-साधना ही उनका ध्येय है, ये ही उन्हें इष्ट हैं। सत्य-जिन-धर्म के प्रचारक वहां तक पहुंच ही नहीं पाते या कहदें कि उन्हें पहुंचने ही नही दिया जाता। भूले-भटके कोई पहुंच भी जाएं तो वे ऐसा वातावरण पैदा करवाते हैं कि सत्य-धर्मोपासक वहां टिक नहीं सकते। ऐसी हालत में यदि मुनि श्री जयमल जी जैसे प्रभावी संत वहां पधारें तो निश्चय की जैसलमेर में जिन-धर्म का उद्धार हो सकेगा।"
मुनि श्री जयमल जी ने इस चुनौती को स्वीकार कर लिया। खीचन, फलौदी, पोकरण के रास्ते से वे जैसलमेर पहुंचे। बीच में पोकरण के ठाकुर श्री देवीसिंह जी ने उनके उपदेशों से प्रभावित हो मद्यपान, शिकार, मांस-भक्षण आदि दुर्व्यसनों का त्याग किया। कई स्थानों पर बीच का मार्ग अत्यन्त दुर्गम एवं बीहड़ था। दृढ़-साधक राह की बाधाओं, कठिनाइयों, आपत्तियों की भला कब परवाह करते हैं। सहज-समभाव से चलते, विहार करते मुनि श्री जैसलमेर पधार गए तो वहां यतियों ने उनके स्वागत का प्रबंध पहले से कर रखा था। मुनि श्री जयमल जी की एक मूर्ति, एक पुतला बनाया गया। उस पुतले का जुलूस निकाला गया और उस पर धूल , कीचड़, सड़ी वस्तुएं उछाली गई, जूतों की माला पहनाई गई। कई न सुनने लाधूलनारे लगाए गए। मुनि श्री ने सुना तो मुस्कराए और कहा-बहुत भले आदमी हैं, मेरे कर्म बंधनों को काटने में सहयोगी बन रहे हैं पर नादान हैं, नहीं समझते कि उनके दुष्कर्म बंध रहे हैं।
यह बात जैसलमेर-नरेश तक भी पहुंची। उन्होंने वास्तविकता की जानकारी प्राप्त की। जब उन्हें मुनि श्री जयमलजी की प्रतिभा और प्रभाव के बारे में ज्ञात हुआ तो स्वयं दर्शनार्थ पधारे। प्रवचन सुना वार्ता हुई और सत्य-स्थिति अवगत कर राज्य-भर में आदेश जारी करवा दिया-"मुंहपत्ति बांधे निस्पृह जैन साधुओं को जैसलमेर राज्य में सर्वत्र स्वतंत्रता-पूर्वक विचरण करने की सुविधाएं दी जाएं।” मुनि श्री जयमल जी ने जैसलमेर में रहकर दो कार्य किये। एक तो शिथिलाचार एवं ब्राह्राडम्बर का खण्डन तथा सत्य-धर्म का प्रचार और दूसरा जैसलमेर के विशाल जिनज्ञान-भंडारों का सतत अवलोकन एवं अध्ययन। .
जैसलमेर में सत्य-धर्म का झण्डा फहराने के बाद आप पुनः गुरुदेव श्री भूधर जी महाराज की सेवा में पहुंचे। कुछ वर्ष उनके साथ रहकर सेवा का अवसर प्राप्त किया। संवत् १८०४, विजयादशमी के दिन, जिस मेड़ता शहर में सौलह वर्ष पहले मुनि श्री जयमल जी ने आचार्य भूधर जी महाराज जैसा संत श्रेष्ठ गुरु प्राप्त किया था, उसी मेड़ताशहर में उन्हें अपने गुरु से सदा-सदा के लिए बिछुड़ना पड़ा। आचार्य भूधर जी महाराज ने काल-धर्म को प्राप्त किया। मुनि श्री जयमल जी ने उस अवसर पर विगयादि का कई तरह से त्याग किया पर सबसे बड़ा जो त्याग था, वह था न लेटने का। उन्होंने भीष्प-प्रतिज्ञा की कि जीवन-पर्यंत लेटकर नहीं सोऊंगा।
गुरुदेव की छत्रछाया हटने पर आपका चिन्तन-मनन और बढ़ गया। जिस-जिस क्षेत्र को आपने स्पर्श किया, वह क्षेत्र-सत्य धर्म के आलोक से जगमगा उठा। श्रावक-श्राविकाओं में जागृति आई। आपके साधु-साध्वियों की संख्या बढ़ने लगी। अनेक दीक्षार्थियों ने आपसे दीक्षा लेकर संयम-मार्ग को ग्रहण किया। जहाँ-जहाँ यतियों का प्रभाव था, वहाँ-वहाँ उनके झूठे भय और प्रभाव को अपने ज्ञानालोक से दूर भगाया। नागौर में भी यतियों का अड्डा था, जिसे मुनि श्री जयमल जी ने निष्प्रभ किया। नागौर-नरेश महाराज
(१४)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org