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हो पायेगा। स्व. स्वामी श्री जोरावरमल जी म.सा. ने अपनी जीवन काल में आपको अनेक बार आगमों का सरल एवंसुबोध भाषा शैली में अनुवाद एवं विवेचना कर प्रस्तुत करने की प्रेरणा भी दी थी। ऐसी ही भावना स्वामी श्री हजारीमलजी म.सा. के हृदय में भी उत्पन्न हुई थी। ऐसी ही भावना स्वामी श्री ब्रजलाल जी म.सा.की भी रही कि आगमों का सुव्यवस्थित सम्पादन, अनुवाद, विवेचन व प्रकाश न होना चाहिए।
अपने गुरुदेव एवं गुरुभ्राताओं की भावनाओं के साथ ही स्वयं की भी प्रबल भावना आगम प्रकाशन की रही। यही कारण था कि आपकी प्रेरणा से आगम प्रकाशन समिति की स्थापना हुई। जैन आगम प्रकाशन समिति की योजना आपके ब्यावर वर्षावास वि.सं. २०३५ में हुई। यह एक भगीरथी प्रयास था। इस योजना को मूर्तरूप देने के लिये समाज के प्रतिष्ठित समाजसेवी, देश के लब्धप्रतिष्ठित विद्वानों के सहयोग की अपेक्षा थी। यह कहना अप्रासंगिक नहीं होगा कि आपश्री के कठिन प्रयासों से देश के मर्धन्य मुनि भगवंतों और सुविख्यात विद्वानों के सहयोग से जैन आगमों के सम्पादन-विवेचन-प्रकाशन का कार्य आरंभ हुआ। अनेकानेक कठिनाइयां और बाधाओं के बावजूद आपकी उपस्थिति में अधिकांश आगम ग्रंथों का प्रकाशन हो चुका था। क्रूर काल ने इतनी भी प्रतीक्षा नहीं की कि वे इस योजना को अपनी आंखों से पूरा होता देख सके। वर्ष १९८३ ई.में नासिक में उनके देवलोक हो जाने के उपरांत यद्यपि उनके अनुयायियों में नैराश्य का वातावरण छा गया था तथापि उनके द्वारा छोड़े गये अधूरे कार्यों को पूरा करने के प्रति पूरा उत्साह था। इसी का परिणाम है कि आज आगम बत्तीसी का प्रकाशन हो चुका है और उनके द्वारा प्रारंभ की गई योजना पूर्ण हो चुकी है। आज इस संस्था द्वारा प्रकाशित जैन आगम न केवल भारत में वरन विदेशों में भी पहुंच चुके हैं। विद्वानों ने इन आगम ग्रंथों की खुले हृदय से प्रशंसा की हैं।
अन्य संस्थाये:- मुनिश्री मिश्रीमल जी म.सा. द्वारा स्थापित कुछ अन्य संस्थाओं का परिचय विस्तार भय मे न देते हुए केवल नामोल्लेख किया जा रहा है। यथा-श्री जैन सिद्धात शाला, मुनिश्री ब्रज मधुकर जैन पुस्तकालय, मुनि श्री हजारीमल जी स्मृति प्रकाशन, बुक बैंक। ये सभी संस्थायें सुव्यवस्थित रूप से चल रही हैं और उत्तरोतर उन्नति की ओर अग्रसर हो रही हैं।
युवाचार्य-पदः- आपका वि.सं. २०३६ का वर्षावास सिंहपोल जोधपूर में था। आचार्य सम्राट श्री आनंद ऋषि जी म.सा. का वर्षावास हैदराबाद में था। आचार्य सम्राट श्री आनंद कृषि जी म.सा. ने लम्बे समय तक अपने उत्तराधिकारी के सम्बन्ध में चिंतन करते हुए अपनी ८० वीं जन्म जयंती के सुअवसर पर दि. २५.७.७९ को आपको युवाचार्य के पद पर नियुक्त कर आपना उत्तराधिकारी बनाया। आचार्य सम्राट की इस ऐतिहासिक घोषणा का सर्वत्र स्वागत हुआ। जोधपुर श्री संघने इस घोषणा से अत्यधिक हर्ष प्रकट किया और युवाचार्य मुनिश्री मिश्रीमल जी म.सा. का सार्वजनिक अभिनंदन कर अपनी भावना अभिव्यक्त की। इसी अनुक्रम में श्रमण सूर्य श्री मरुधर केसरी जी म.सा. के परामर्श से चैत्र शुक्ला , १० वि.सं. २०३६ तदानुसार २६ मार्च १९८० को जोधपुर श्रीसंघ द्वारा एक महोत्सव का आयोजन कर आपको यवाचार्य पद की चादर ओढ़ाई गई। इसे चादर महोत्सव भी कहा गया। इस महोत्सव में अनेक सुविख्यान मुनिगण, महासतियांजी तथा हजारों की संख्या में श्रावक-श्राविकायें उपस्थित हुए थे तथा अपना श्रद्धाभाव प्रकट किया था।
दक्षिण की ओर:- आपका विहार क्षेत्र अभी तक मारवाड़ या समीपवर्ती क्षेत्रों तक ही सीमित था। युवाचार्य के पद पर प्रतिष्ठित हो जाने के उपरांत सीमित क्षेत्र में रहना कुछ असंभव लगने लगा। उत्तरदायित्व में भी वृद्धि हुई। कांफ्रेंस के अधिकारी, श्रमण संघ के शुभ चिंतक और प्रमुख श्रावकों का यह
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