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युवाचार्य श्री मधुकर मुनिः जीवन दर्शन
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• मधुकर झणकार चरणोपासिका साध्वी श्री आनंद प्रभा 'आशा' आमेट
भारतवर्ष की धरती रत्नगर्भा वसुंधरा हैं। इस धरा पर अनेकानेक महान विभूतियों ने अवतरित होकर इसके गौरव में चार चांद लगाये हैं। इसी भारतवर्ष के राजस्थान में अनेक शूरवीर, धर्मवीर, कर्मवीर, दानवीर, तपवीर भी हुए हैं जिनकी गौरव गाथायें आज भी जन जन में प्रचलित है और बड़े गौरव के साथ सुनी और सुनाई जाती हैं।
इसी राजस्थान में स्वतंत्रता के पूर्व जोधपुर राज्य था जिसमें ओसिया नामक नगर था और आज भी हैं। ओसिया इतिहास प्रसिद्ध नगर हैं। प्राचीनकाल में इस नगर का अपना विशिष्ट महत्व था। इसी नगर से जैन धर्मावलम्बियों की सुविख्यात ओसवाल जाति की उत्पत्ति हुई। इसी ओसया के समीप तिवरी नामक ग्राम हैं। कहा जाता हैं कि तिवरी किसी समय ओसिया का ही एक भाग था। कभी यहां ओसवालों के पांच सौ सुखी परिवार रहा करते थे। समय की बात हैं। आज कई स्थान ऐसे है कि पहले जहां जगंल थे वे अब आबाद है और जो आबाद थे, वहां अब जंगल हैं। इसी तिवरी ग्राम में श्रीमान जमनालाल जी धाड़ीवाल (कोठारी) अपनी पत्नी धर्मपरायण, पतिपरायणा, सौभाग्यवती तुलसीबाई के साथ रहा करते थे।
__ जन्मः- दि. १२ दिसम्बर १९१६, वि.सं. १९७० मार्गशीर्ष शुक्ला १४ के शुभ दिन माता तुलसीबाई की पावन कुक्षि से एक पुत्ररत्न का जन्म हुआ। परिवार में हर्षोल्लास छा गया। माता-पिता ने अपने इस पुत्र का नाम रखा 'मिश्रीमल'। श्रीमान जमनालाल जी के कुल तीन पुत्र थे-धनराज जु फूलचंद जी एवं मिश्रीमल जी। श्रीमान जमनालाल जी के ज्येष्ठ भ्राता नि:संतान थे, इस कारण उन्होंने धनराजजी को गोद ले लिया था। फूलचंद जी बाल्यावस्था में ही कालकवलित हो गये थे, इस कारण माता-पिता का समस्त दुलार बालक मिश्रीमल पर ही केन्द्रित हो गया।
होनहार बिरवान के...महापुरुषों के लक्षण उनके बाल्यकाल में ही प्रकट हो जाते हैं। इसीलिये कहावत प्रचलित हुई कि होनवार बिरवान के होत चिकने पात अथवा पूत के पांव पालने में दिखाई देते हैं। ऐसे ही कुछ विलक्षण लक्षण बालक मिश्रीमल में भी विद्यमान थे। आपकी श्रद्धा आरंभ से ही धर्म के प्रति रही। अपनी माताजी के साथ मुनियों एवं महासतियों के दर्शन करने और प्रवचन पीयूष का लाभ लेने के लिये आप भी जाते थे।
इस क्षेत्र में आचार्य श्री जयमल जी म.सा. के सम्प्रदाय के मुनियों का आगमन प्राय: होता रहता था। उन दिनों स्वामी श्री जोरावरमल जी म.सा. एवं स्वामी श्री हजारीमल जी म.सा. का आगमन तिवरी में समय समय पर होता रहता था। बालक मिश्रीमल स्वामी श्री हजारीमल म.सा. के समीप बैठा रहता और उनसे कहानियां सुना करता। बालक मिश्रीमल की स्थिति यह हो गई कि यदि माता तुलसीबाई उसे घर चलने के लिए कहती तो वह मना कर देता और कह देता कि वह तो महाराज सा.के पास ही रहेगा।
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