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भेद जहाँ में
यह तो है
बाहर की दृष्टि एक बार अन्तर में झांको, दृश्यमान
जो जलती ज्योति एक दिखेगी चैतन्य स्वरूपी ज्ञान स्वरूपी शक्ति स्वरूपी
स्मृति के लिए
• श्री नमन मुनि (मल्लेश्वरम-३) परम पावन, मन की राजा,
रही कामना मेरी अधूरी॥५॥ श्रमण संघ की शान।
चम्पाकंवर श्री महासती जी साध्वी रत्न महासाध्वी
गये लम्बे डगर पै सुना। कान कुँवर गुणखान॥१॥
छोड़ गयी सृष्टि मध्य की फूल चम्पा का सुगन्ध भरा है।
ऊर्ध्व सृष्टि में आनंदित अधुना॥६॥ आया पास पाया सुवास
उसी समय में कान कुँवर जी, महासती श्री चम्पा कंवर जी
आदि ठाणा सात से
विराज रहे थे, हम भी पहुंचे मद्रास नगर में आप विराजे।
दुखी हृदय था, दुख भरी बात से॥७॥ जन-जन आप से लाभ लेता।
कानकंवर जी महासती जी फूल सा सुवास प्रसारित
बोले हम से मधुर बान में। देख हृदय हिलोरे लेता॥३॥
अनेक अनुभूत सत्य प्रकट कर मद्रास में चउमास-वास में
हमें पावन किया उस स्थान में॥८॥ और शेखा काल के वास में।
किन्तु हा दैव! गजब तेरा आलम है। आप के मधुर स्नेहिल भाव को
बैंगलोर विदा लेकर हम आये देखा जाना बैठ पास में॥४॥
स्वर्गवास का समाचार सुन ऐनावरम् रेल्वे क्वाटर्स,
हम भी भ्रमित, संभल न पाये॥९॥ मैंने सुनी सूचना बुरी।
छोटेकाल के अन्तराल में। पुनः-पुन: दर्श लाभ की
दो - दो रत्न अस्ताचल पर (७८)
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