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नर नारी उदास भयी॥ शिष्या आसूं डारी हो (नमन)॥८॥ कान चम्पा प्यारी थी। जोड़ी प्रिय कारी थी॥
हर्ष नर नारी हो (नमन)॥९॥ संसार असार का। दिया उपदेश था। तरुण श्रद्धा बारी हो (नमन)॥१०॥
घणी दुःख भरी बात (तर्ज- बटाऊड़ो आयो लेवाने)
• साध्वी श्री तरुण प्रभा 'तारा)
आ तो दुःख भरी है सारी बात गुरुणी जी जग छोड़ गये ॥टेर॥
जिला नागौर ग्राम कुचेरा जन्म लियो सुविशाल।
पुखराज जी किशनीबाई घणा हुआ निहाल ॥१॥ कानकुंवर गुरुणी से संयम ले चले वीर के पंथ। खूब दीपायो जिन शासन को, महासती गुणवंत॥२॥ जप तप संयम सेवा समता, करते नित स्वाध्याय। मीठी वाणी सदा बोलते विनय भरा था रग रग माय॥३॥
सब चेलिया ने ज्ञान ध्यान तो घणो सिखायो नाथ।
रोता सबने छोड़ गया, अबकूण फेरेला माथे हाथ॥४॥ क्षमा भाव विवेक ज्ञान का दिव्य तेज था पास। आगम ज्ञान रमा अंतर में, जैसे फूलों में है सुवास॥५॥
युवाचार्य की शिष्या माही आप घणा व्याख्याता।
मेवाड़ मरुधरा देश विदेशे घणो कियो धर्मउद्याता॥६॥ सब चेलिया पर महर आपकी सदा रही सुखकार। किधर गये अब छोड़ हमें, पर बहे आतूं धार ॥७॥
कंचन चेतनघणी लाड़ली रह गई थांसू दूर। चन्द्र ज्योति घणी सुहाती रह गई कोसों दूर॥८॥
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