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नारी का असली रूपः महावीर की दृष्टि में
• प्रखर वक्ता साधुरल श्री विनोद मुनिजी महाराज, अहमदनगर अतीत का इतिहास
सोच सके नहीं साक्षी है,
विचार सके नहीं, इस बात का
घर की चारदीवारी में छीन लिया था अधिकार
बन्दी बन कर जो था नारी का।
हर समय रहना पुरुष को
बस यही नारी का रूप। पुरुषत्व के
कहा किसी नेअहं के भूत ने
पैर की जूती! था दबोचा।
एक फटे विमूढ़ हो कर
अन्य ले आये। अनाधिकार से
नागिन के तुल्य! उठा लिया
पशु समकक्ष। नर ने कदम
और नरक की खान! बन गया सर्वेसर्वा।
यों करी भर्त्सना। नारी क्या है?
करी तर्जना। अबला है,
धर्मक्षेत्र में पुरुषाश्रित है,
वेद ज्ञान की मानव के
मुक्ति स्थान की मनोविनोद का
अनाधिकारिणी मोहक एक खिलौना,
जग में नारी। विलास का, आमोद प्रमोद का
ज्ञान और मुक्ति भी सिर्फ एक साधन
पुरुष की ही है बस, यही नारी का रूप।
बपौती स्वतंत्रता से
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