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गुरु पाये मधुकर जी, मुनियों में सरदार। ज्ञान ध्यान पाया उनसे, और पाया जीवन सार॥
ज्ञान ध्यान में सदा, रहती थी आप लीन। रखती सबसे सम व्यवहार, श्रेष्ठी हो या दीन॥
(६) जैनागम अध्ययन किया, बहु थोकड़ों में प्रवीण। इतना उपकार किया तुमने, एक-दो नहीं अनगिन॥
(९) वसन्त कंवर कंचन जी, रहती संयम लीन।
चेतन चन्द्र प्रभा जी, सुमन सुधा प्रवीण॥
(१०) अक्षय जी रहती सदा, संयम में अडोल। सदा जीवन में धारती, गुरुणी जी की बोल॥
(११) धन्य तुम्हारे माता पिता धन्य तुम्हारा कूल। जिन शासन को जिन्होंने, दिया सुन्दर फूल॥
(१२) साध्वी रत्न द्वय को, श्रद्धा पुष्प खास। कृपा दृष्टि रखो सदा, यही मन में आस। उत्तम की स्वीकार करो श्रद्धाजंली तुम आज। याद तुम्हें करें सदा, सारा जैन समाज॥
शिष्याएँ सब आपके, हैं गुणों के खान।
स्वाध्याय तप जप में, और रहे हरदम ध्यान॥
(८) महासती चंपा कंवर जी, थी शासन की शान। दिव्य लोक में चली गयी, बन वहां की मेहमान॥
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