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दीक्षा ले गुरुदेव से, झगडु कुरमो जंग॥४॥ विश्व में विरहनी भई, वाह त्याग वीतराग। सती मद्रास स्वोंचढ़ी, तन भौलिक कर त्याग॥५॥ गुरु मधुकर गुनवान थे, थिर स्थानक के माय। सती दोय सिद्ध वचन थी, गई सुरपुर के ताय॥६॥
श्री कानकंवर सवैया देह विदेहन हंसवृति तुझ, क्षीर रुनीर सो न्याय नवीनो। याजग मान की पाल कलवत, संयम साध सुधारस पीनो॥
___ कषायन को झकझोर कियो सती, कानकंवर सती मूल्य नगीनो।
रूप कहे जश आभ युग्यो तुझ, आज्ञाकार गुरु दोय सतीनो॥ आप विलोकित तोप के मीनन, दीनन गाव सदा धर्त मानो। चम्पासती समयाजग दुर्लभ, मुने मधु की दोय जानो।
जाति रही नशवरजग छोड़ के, दया दमन दिल करती थी दानो। रूप कहै दोनु सती शीतल, चम्पाऊँवर व महासती कानो।
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कवित्ता वयोवृद्ध विदुषी चंपा सती कानकँवर,
भंवर कमल जैसे मधुमद पाती थी गुरु के संकेत साथे चालती थी हंस वृत्ति,
सुकोमल शान्त धृति-मोती वरसाती थी॥ अरिहन्त उपासिका, दासक मधुकर जी की,
मधुकरी धारण कर गौचरी कुँ लाती थी। रूप कहै श्रद्धाञ्जली, सुमन चढ़ाऊं सती,
जीवन की दाय दिव्य ज्योति जगमगाती थी॥
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