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कष्टों का स्वागत करो, कसौटी जानों दृढ़ता सहिष्णुता का महत्व पहचानों
यह कर्मवाद का स्रोत सदैव बहेगा
सुख नहीं रहा तो, दुःख भी नहीं रहेगा... जगमगाते तारों से आकाश भरा हो किन्तु चन्द्रमा के बिना चांदनी रात नहीं कहलाती। सरोवर सजाया गया हो किन्तु कमल के अभाव में श्वेत परिधान सा लगता है। सुमनों के अभाव में उपवन भी वन प्रतीत होता है। हीरा साथ हो तो रत्नों की शोभा द्विगुणित हो जाती है। चमेली के फूलों से सारा आंगन सजा हो किन्तु चम्पा के पुष्प के बिना सभी फूल श्री विहिन लगते हैं कहावत है चम्पा बिना चमेली कैसी?
धर्म शासन को समर्पित कुचेरा के सुराणा परिवार के बगीचे में आकर्षक मनोरम चम्पा का एक फूल खिल उठा। सभी ओर खुशियों के नगारे बज उठे। अत्यन्त लुभावना तेजस्वी मुख मण्डल, दिव्य ललाट, किरणों की आभा बिखेरते नयन बरबस आकर्षित कर लेते। नन्ही-सी बालिका ने अपनी किलकारियों से सूने महल को स्वर्ग बना दिया। घर का कोना कोना स्वर्णिम आभा से आलोकित हो उठा।
चन्द्रमा की भांति शीतलता बिखेरता बालपन किन्तु दिव्य प्रकाश को समेटे धार्मिक विचार उस समय पल्लवित हो उठे जब भुआजी पू. श्री कानकुंवरजी म.सा. ने भौतिकता से मुखड़ा मोड़ संयम पथ अपनाने का दृढ़ निश्चय किया। दीक्षा के प्रसंग पर छोटी सी बालिका ने निर्भयता से कह दिया कि मैं भी भुआजी के साथ दीक्षा लूंगी। अबोध बालिका ने परिवार वालों की भावी आशंकाओं से भर दिया। शिक्षा प्राप्त करने के बाद दीक्षा देने का प्रलोभन देकर मध्यप्रदेश के बालाघाट जिले के कटंगी ग्राम ले आये।
शिक्षा के साथ साथ यौवनावस्था ने भी प्रवेश पाया। सुराणा परिवार के प्रयास ने वैवाहिक बंधनों में बंधने के लिए मजबूर कर दिया। बालाघाट के श्री रामलाल जी कातेला के साथ शहनाइयों की मधुर स्वर लहरी के बीच विवाह सम्पन्न हो गया। दोनों पक्ष सुनहरे सपनों में खो गये। सुन्दर युगल को विधि
। यमराज की जिस पर नजर पड़ जाये भला वह कभी विजय के नगारे बजा सकता है? क्षणिक सुख के संयोग, वियोग में बदल गये फूल-सी जोड़ी को शूलों ने असह्य चुभन दे दी। सुहागन को वैधव्य ने ग्रस लिया। चारों ओर उदासी ही उदासी, अंधेरा ही अंधेरा, पुष्प खिलते ही मुरझा गया। सहारा छूट गया। नाविक के बिना जीवन नैया तूफानों में डगमग डोलने लगी। निराशा ही निराशा छा गई। चन्द्रमा को ग्रहण लग गया। सुमनों की सौरभ लुप्त हो गई। जमाने को इन सब बातों से कोई मतलब नहीं, दुनिया तो दुःख के समय और दुःखित करती है। वैघव्य को उजागर करने वाले श्वेत वस्त्र पहनाये गये। मन में एक टीस उठी जिसने कोमल मन को छलनी कर दिया।
गहन अंधकार के बाद प्रातः की किरणें जन मन को जागृत करती हैं। दुःख के पहाड़ टूटते हैं तो नया मार्ग मिलता है। शोक की कालिमा में घेरने वाले शुभ्र वस्त्रों ने नया विश्वास, नई चेतना जागृत कर दी। बचपन के संस्कार पुनः पल्लवित हो उठे। उजड़े चमन में पुनः बहार आई। मन के कोने में संयम की शहनाई गूंज उठी। भुआजी महाराज की याद बेचैन करने लगी। दृढ़ संकल्प जागा। “मैं सफेद कपड़ों से मिले वैघव्य पर विजय प्राप्त कर संयम के श्वेत परिधान पहनूंगी।" संकल्प शक्ति ही इंसान को
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