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अपूरणीय क्षति
• रीखबचन्द लोढ़ा, मद्रास
राजस्थान त्याग और बलिदान की भूमि रही है। इसके कण-कण में यह विशेषता व्याप्त है। यहाँ अनेक धर्मवीर कर्मवीर, तपवीर, दानवीर और शूरवीर हुए है। इन वीरों की गौरव गाथायें आज भी घर-घर में गूंज रही है।
राजस्थान के नागौर जिले में भी ऐसी अनेक विभूतियां हुई है। कृष्ण भक्त कवयित्री मीराबाई की जन्म भूमि मेड़ता भी नागौर जिले में ही है। नागौर जिले में ही एक कस्बाई गांव कुचेरा है। कुचेरा अपनी अनेक विशेषताओं के लिये प्रसिद्ध है। कुचेरा में जैन धर्म की परम्परा काफी पुरानी है। इस गांव का सम्बन्ध अनेक मुनि भगवंतों एवं साध्वियां जी महाराज से रहा है। अनेक की यह यह कर्मस्थली रहा है, तो यहाँ जन्म लेकर अनेक भव्यात्माओं ने संयम मार्ग अंगीकार कर स्व-कल्याण तो किया। भी मार्गदर्शन प्रदान किया है।
प्रातः स्मरणीय, वज्रसंकल्प के स्वामी पूज्य आचार्य श्री जयमल जी म.सा. का तथा उनके उत्तरवर्ती आचार्यो, मुनिराजों का इस क्षेत्र में विशेष प्रभाव रहा है। उन्हीं की सम्प्रदाय की अनेक साध्वियों का कुंचेरा से निकट सम्पर्क रहा है और अनेक साध्वियों ने यहीं जन्म लेकर जैन धर्म की ध्वजा पूरे भारत में फहराई है। ऐसी महान साध्वियों में अध्यात्मयोगिनी महासती श्री कानकुंवर जी म.जा. एवं परमविदुषी, कुशल प्रवचनकर्ती महासती श्री चम्पाकुवंर जी म.सा. का नाम पूर्ण श्रद्धा भक्ति के साथ लिया जाता है। दोनों ही महासतियां जी का जन्म कुचेरा में हुआ और दोनों ने संयमव्रत भी यहीं पर अंगीकार किया।
लगभग सात वर्ष पूर्व दानवीर सेठ सा. पद्मश्री श्री मोहनमलजी सा. चोरडिया ने पू. महासती श्री कानकुवंर जी म. के नाम से कुचेरा में एक स्थानक भवन का निर्माण करवाया था। यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि श्रीमान चोरडिया सा. कुचेरा की एक हस्ती थे औ सुप्रसिद्ध समाज सेवी भी थे।
__ मारवाड़ में धर्म प्रचार करते हुए दोनों ही महासतियां जी मेवाड़, मध्यप्रदेश में भी पधारी और मध्यप्रदेश के छत्तीसगढ़ क्षेत्र में अच्छी प्रभावना कर गुरु गच्छ का नाम उज्ज्वल किया। मध्यप्रदेश से आपका विहार आंध्रप्रदेश की ओर हुआ। आंध्रप्रदेश में भी धर्म ध्यान का ठाट मच गया। जब आपका पदार्पण कर्नाटक में हुआ तो श्रद्धालु भक्तों में प्रसन्नता की लहर फैल गई। रायचूर, सिंधनूर आदि स्थानों पर धर्म गंगा प्रवाहित हो गई।
कर्नाटक से महासतियाँ जी का आगमन साहुकार पेठ, मद्रास में हुआ। यहां यह स्मरणीय है कि जब महासतियां जी कर्नाटक में विचरण कर रही थी, तब साहुकार पेठ, मद्रास का श्रीसंघ बार-बार आपश्री की सेवा में उपस्थित होकर मद्रास पधारने की विनती करता आ रहा था। उसी विनती को ध्यान में रखकर आपका पदार्पण मद्रास में हुआ था। आपके मद्रास पदार्पण से श्रीसंघ में नई चेतना उत्पन्न हो गई। हमारे लिये तो यह और भी गौरव की बात थी। कारण कि हमारा परिवार भी कुचेरा का ही है। इस कारण अपनत्व की भावना में और अधिक वृद्धि होती है।
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