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जन्म ग्रहण न किया हो और ऐसा कोई प्राणी नहीं बचा जिसके साथ अपनी आत्मा ने संबंध न किया हो। अनन्त-शक्ति को पहचानकर आत्मा और शरीर भेद विज्ञान को पा लिया। आत्म वैभव, सम्पन्न महासती द्वय की साधना विश्व के प्राणिमात्र के प्रति मंगलमय भावनाओं से ओत-प्रोत, वात्सल्यमय भावनाओं से सराबोर और सबके कल्याण की भावनाओं से युक्त थीं। आप दोनों का जीवन त्याग वैराग्य पूर्ण दीप्तिमय जीवन की अद्भुत मशाल के रूप में था।
आपने गुरु आज्ञा, विनम्रता, सरलता, स्पष्टता, विराटता, सजगता, वात्सल्यता से ही आत्मा का श्रृंगार किया। आप उभय महान आत्माओं का जीवन वंदनीय एक स्तुत्य है। उभय आत्मा जहां भी हो उसे शांति प्राप्त हो और अंततः चरम लक्ष्य अक्षयानंद की प्राप्ति हो, इन्हीं भव्य भावनाओं के साथ उच्च कोटी-की द्वयात्मा को श्रद्धा प्रसून समर्पित है।
गुणरत्नों से आप्लावित जीवन
• श्री मधुकर शिष्या झणकार चरणोपासिका
एस. चन्दन बाला 'मंजुल' आमेट (राज.)
विदुषी साध्वी श्री चन्द्रप्रभा के कुशल सम्पादन में महासती जी स्व. साध्वी रत्न श्री कानकुंवरजी म. सा. मधुर व्याख्यानी स्व. श्री चम्पाकुंवरजी म. सा. की पावन स्मृति में महासती द्वय स्मृति ग्रन्थ का प्रकाशन, हम सभी के लिए महान उपलब्धि है।
दोनों ही साध्वी प्रवर जैन समाज की महान विभूतियां थी। जिनके जीवन सरोवर में प्रेम, दया, करुणा के सुगंधित पुष्प विकसित होते हैं व परोपकार का माधुर्य, चारित्रादि गुणों का सौन्दर्य अनोखेपन को लिए हुए हो, वह आदरणीय/वन्दनीय/ पूजनीय बन जाता हैं।
उन्हीं में से थे ये द्वय साध्वी रत्न जिन्होंने सद्गुणों की अनोखी रंग-बिरंगी छटा जन मानस पर बिखेर दी। नानाविध गुणों से जीवन शोभा में अभिवृद्धि की।
द्वय श्रमणी रत्न बाहर से जितने मनोरम थे। उससे भी कही अधिक आप अन्दर से मनोरम थे। आपकी मंजुल मुखाकृति पर गम्भीर वैचारिकता की भव्य आभा झलकती थी। और उदार आंखों के भीतर से बालक के समान सहज स्नेह सुधा बरसती थी। जब भी देखा वार्तालाप में सरलता शालीनता और संक्षिप्तता के दर्शन होते थे। हृदय की उच्छल संवेदनशीलता एवं उदारत्त करुणा दिखाई देती थी।
मैंने कई बार आपके दर्शन किये, करीब से देखने का मौका मिला। आपका बाह्य एवं आन्तरिक व्यक्तित्व बड़ा ही प्रभावशाली था। कुछ क्षणों के सम्पर्क में ही जीवन की लम्बी दूरी को पार करके आगन्तुक आत्मीय स्नेह के सूत्र में बंध जाता था। आपका प्रथम साक्षात्कार ही जीवन की स्मरणीय रमणीय याद बन जाती थी। अनेकानेक गुणरत्नों से जिनका जीवन आप्लावित था वे द्वय सती प्रवर आज हमारे मध्य इस भौतिक देह से नहीं है। उन द्वय महासती की दिवंगत आत्मा को भावाभिव्यंजना अर्पित करती हूँ।
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