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साध्वी जी श्री चम्पाकुंवर जी म.सा. ने विक्रम सं. २००५ माघ शुक्ला १० को स्वामी जी श्री हजारीमल जी म.सा. के मुखारविन्द से आर्हती दीक्षा अंगीकार की थी। आपश्री ने अपनी इस सुदीर्घ दीक्षा पर्याय को सेवा साधना और स्वाध्याय की त्रिधारा से पवित्र बनाया। साधना की अमर साधिका साध्वीजी उस दीप के समान है, जो स्व-पर को समान रूप से प्रकाशित करता है।
साध्वीजी की जीवन पौथी के प्रत्येक पत्रे में विनय, विवेक, क्षमता, मधुरता, पवित्रता के सूत्र संजोये हुए है।
साध्वीजी के देहावसान से चतुर्विध संघ की अपूरणीय क्षति हुई है। दिवगंत आत्मा को परम शान्ति प्राप्त हो, यह कामना करते हुए हार्दिक श्रद्धाजंलि अर्पित करते हैं।
शोक प्रस्ताव कवर्धा (म.प्र.) श्रमणसंघीय सलाहकार पूज्य गुरुदेव श्रीरतनमुनि म.सा. आदि ठाणा ५ को तार द्वारा यह जानकार कि वयोवृद्धा सरलमना पू. श्री कानकंवरजी म.सा. का देहावसान हो गया, अत्यन्त दुःख हुआ।
व्याख्यान बंद करके शोक सभा मनाई गई। पूज्य श्री गुरुदेव ने उनका पूरा परिचय कुचेरा, कटंगी और मद्रास से संबंधित दिया। आपने कहा कि दुर्ग और रायपुर में चातुर्मास और सिकन्दराबाद एवं दुर्ग में दीक्षायें आदि कराने का प्रसंग आया। आचार्य श्री जयमल सम्प्रदायस्थ होने के कारण निकट सम्बन्धों में रहे है। आपने कहा कि श्री चम्पाकंवरजी म.सा. के दुखद अभाव ले ही नहीं थे कि आपश्री का देहावसान हो गया। पीछे साध्वी समुदाय पर वियोग का यह दोहरा दुःख आ पड़ा है। संवेदना व्यक्त करते हुए चार लोगस्य का ध्यान कर दिवंगत आत्मा की शांति की कामना की गई। कवर्धा में भी आपश्री का आगमन हुआ था। शोक प्रस्ताव के साथ सभा विसर्जित हुई।
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आमेट में शोक सभा दिनांक ७-८-९१ को सूचना मिली की मद्रास में विराजित पूज्य महासतियांजी श्री कानकुंवरजी म.सा. का स्वर्गवास हो गया, यह सुनकर अत्र विराजित महासतियांजी श्री मनोहर कुंवरजी म.सा. को हार्दिक दुख हुआ तथा संघ में शोक व्याप्त हो गया। महासतीजी के सान्निध्य में शोकसभा का आयोजन रखा गया। महासतीजी श्री मनोहरकुंवरजी एवं आनंद प्रभा जी तथा चन्दन बाला म.सा. ने संवेदना भरे स्वर में स्वर्गस्थ महासतीजी को श्रद्धाजंलि अर्पित करते हए उनके आदर्श जीवन पर प्रकाश डाला एवं उनके बताये हुए मार्ग पर चलने की सप्रेरणा दी। साध्वी जी भी चन्द्रप्रभाजी एवं सविताजी ने गीतिका के माध्यम से श्रद्धाजंलि प्रदान की।
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