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प्रवचन फरमाते हुए पूज्यश्री
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२०-७-२०००, गुरुवार
श्रा. कृष्णा -४
सामूहिक वाचना (समस्त समुदायों के पूज्यों का आगमन)
* मोहराजा के आक्रमणों से त्रस्त संसार में भटकते हमको कैसे मार्ग मिलता यदि भगवान ने तीर्थ की स्थापना करके मार्ग नहीं बताया होता ? दवाई नहीं होती तो रोगी का क्या होता? यह शासन नहीं होता तो हमारा क्या होता ? हम सभी रोगी हैं। यह शासन उसकी औषधि है। धन्वंतरि वैद्य की अपेक्षा भी भगवान महान् वैद्य हैं, क्योंकि आन्तर रोग की औषधि धन्वंतरि वैद्य के पास भी नहीं है । इस भाव औषधि से भाव आरोग्य प्राप्त होता है ।
गणधर ऐसे आरोग्य के लिए ही भगवान के समक्ष प्रार्थना करते हैं । 'आरुग्ग बोहिलाभं'
- लोगस्स * दर्पण की इच्छा हो या न हो परन्तु वह यदि स्वच्छ हो तो प्रतिबिम्ब पड़ेगा ही । हमारा मन स्वच्छ बन जाये तो भगवान