________________
शलाका पुरुष
१०. भावि शलाका पुरुष निर्देश
२. कुलकरके अपर नाम व उनका सार्थक्य ति. प./४/५०७-५०१ णियजोगसुदं पढिदा वीणे आउम्हि ओहिणाण
जुदा। उपज्जिदूण भोगे केई णरा ओहिणाणेणं ।५०७। जादिभरणेण केई भोगमणुस्साण जीवणोवायं । भासंति जेण तेणं मणुणो भणिदा मुणिदेहिं ।५०८) कुनधारणादु सव्वे कुलधरणामेण भुवणविवादा। कुलकरणम्मि य कुसला कुल करणामेण सुपसिद्धा ।५०६। - अपने योग्य श्रुतको पढकर इन राजकुमारों में से कितने ही आयुके क्षीण होनेपर अवधिज्ञानके साथ भोगभूमिमें मनुष्य उत्पन्न होकर अवधिज्ञानसे
और कितने ही जाति स्मरणसे भोगभूमिज मनुष्योंको जीवनके उपाय बतलाते हैं, इसलिए मुनीन्द्रोंके द्वारा ये मनु कहे गये हैं ।५०७५०८। ये सब कुलोको धारण करनेसे कुलधर और कुलों के करने में कुशल होनेसे 'कुलकर' नामसे भी लोकमे प्रसिद्ध हैं ।५०६॥ (म. पु./ ३/२१०-२११)।
३. पूर्वमव सम्बन्धी नियम ति. प./४/५०४ एदे च उदस मणुओं पदिसुदिपहुदी हु णा हिरायंता । पुत्र भवम्मि विदेहे राजकुमारा महाकुले जादा ।५०४ - प्रतिश्रुतिको आदि लेकर नाभिराय पर्यन्त ये चौदह मनु पूर्व भवमें विदेह क्षेत्रके भीतर महाकुल में राजकुमार थे।५०४।
४. पूर्वभवमें संयम तप आदि सम्बन्धी नियम ति. प/४/५०५-५०६ कुसला दाणादीसं संजमतवणाणवंतपत्ताणं । णियजोग अणुट्ठाणा महवअज्जवगुणेहिं संजुत्ता ।०५। मिच्छत्तभावणाए
भोगाउंबंधिऊण ते सव्वे । पच्छा खाइयसम्म गेण्हं ति जिणिदचलणमूलम्हि ।५०६ = वे सत्र संयम तप और ज्ञानसे युक्त पात्रों के लिए दानादिकके देने में कुशल, अपने योग्य अनुष्ठानसे युक्त, और मार्दव, आर्जव गुणोंसे सहित होते हुए पूर्व में मिथ्यात्व भावनासे भोगभूमिकी आयुको बाँधकर पश्चात जिनेन्द्र भगवान के चरणोंके समीप क्षायिक सम्यक्त्व को ग्रहण करते हैं 1५०५-५०६। (त्रि. सा./६४) ।
५. उत्पति व संख्या आदि सम्बन्धी नियम ति. प./४/१५६६ वाससहस्से सेसे उत्पत्ती कुलकराण भरहम्मि । अथ चोहसाण ताण कमेण णामाणि बोच्छामि।-इस कालमें (पंचमकाल प्रारम्भ होने में ) १००० वर्षोंके शेष रहनेपर भरत क्षेत्रमें १४ कुलकरोकी उत्पत्ति होने लगती है। (कुछ कम एक पक्यके वें भाग मात्र तृतीयकालके शेष रहनेपर प्रथम कुलकर उत्पन्न हुआ।-दे०
शलाका पुरुष/१।१)। म. पू./३/२३२ तस्मान्नाभिराजश्चतुर्दशः। वृषभो भरतेशश्च तीर्थ चक्र
भृतो मनू ।२३२१-चौदहवें कुलकर नाभिराय थे। इनके सिवाय भगवान् ऋषभदेव तीर्थकर भी थे और मन भी, तथा भरत चक्रवर्ती
भी थे और मनु भी थे। त्रि. सा./७६४...खझ्यसं दिछी । इह खत्तियकुलजादा केइज्जाइभरा
ओही ।७६४।क्षायिक सम्यग्दृष्टि जीव कुलकर उपजते है। और भी क्षत्रिय कुल में जन्मते हैं। (यहाँ क्षत्रिय कुलका भावी में वर्तमान का उपचार किया है।)। ते कुलकर केइ तौ जाति स्मरण संयुक्त है, और कोई अवधिज्ञान संयुक्त है।
१०. भावि शलाका पुरुष निर्देश १. कुलकर चक्रवर्ती व बलदेव
१. कुलकर
२. चक्रवर्ती
३. बलदेव
१. ति. प./४/१५७०-१५७१
२. ह. पु./६०/५५५-१९७ काम- ३. म. पु./७६/४६३-४६६.
१. ति. प./४/१५८७-१५८८ २.त्रि. सा./८७७-८७८ ३.ह.पु./६०/५६३-५६५
808-228/26/-
१.ति. प./४/१५-१-१५६० २. त्रि. सा./८७८-८७६ ३. ह. पु./६०/५६८-५६६ ४. म. पु./७६/४८५-४८६
प्रमाण
| ৰিহী
प्रमण विशेष
सामान्य
सं०
सामान्य
8
कनक
कनकप्रभ कनकराज
भरत दीर्घदन्त मुक्तदन्त (३ जन्मदत्त) गूढदन्त
चन्द्र महाचन्द्र चन्द्रधर
४
चक्रधर
कनकध्वज
वरचन्द्र
२,३,४ | हरिचन्द्र
कनकपुख नलिन
., ध्वज
पुख
२,३ कनकपंगव ।। श्रीषेण
सिंहचन्द्र श्रीभूति हरिचन्द्र
२४ वरचन्द्र श्रीकान्त श्रीचन्द्र
पूर्णचन्द्र पद्म पूर्णचन्द्र .
शुभचन्द्व महापद्म सुचन्द्र
२,४ । श्रीचन्द्र नलिन पंगव चित्रवाहन
बालचन्द्र पद्म
बिमल वाहन (४ विचित्र वाहन) : अरिष्टसेन
नोट-त्रि, सा. व. ह. पु. में नामोंके क्रममें अन्तर है। ह. पु. में ५ वाँ वरवन्द्र २३ | पद्मपुंगव
नाम नहीं दिया है । अन्तमें बालचन्द्र नाम देकर कमी पूरी कर दी है। ___ महापद्म
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
पद्मप्रभ पद्मराज पद्मध्वज पद्मपुख
भा०४-४
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org