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शलाका पुरुष
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९. सोलह कुलकर निर्देश
१०. नाम११.दण्ड विधान । १२. तात्कालिक परिस्थिति
१३. उपदेश
प्रमाण देखो पीछे
'lit/8/'h PL
म.पू./३/श्लो.
१.ति.प./४/४५२-४७४ २, त्रि. सा./४६८ ३.ह.पु./७/१४१-१७६ ४. म. पु./पूर्ववत
१. ति.प./पूर्ववत् २. त्रि. सा./988-८०२ ३. प.पु./३/७५-८८ ४. ह.पू./७/१२५-१७० ५. म. पु./पूर्ववत
१.ति. प./पूर्ववत् २. त्रि. सा./988-८०२ ३. प. पु./३/७५-८८ ४.ह.पु./७/१२५-१७० ५.म.पु./पूर्ववत
| ति.प./४५२
१/४२३-४२८६३-७५
प्रतिश्रुति
२४३२-४३८ | ७६-८४
सन्मति
३ | ४४१-४४३
१०-१०१
क्षेमंकर
| चन्द्र सूर्यके दर्शनसे प्रजा भयभीत थी| तेजांग जातिके कल्पवृक्षोंकी कमीके
कारण अब दीखने लगे हैं। यह पहले भी थे पर दीखते न थे। इस प्रकार उनका परिचय देकर भय दूर
करना। तेजांग जातिके कल्प वृक्षोंका लोप। अन्धकार व ताराओंका परिचय अन्धकार व तारागणका दर्शन । देकर भय दूर करना। व्याघ्रादि जन्तुओं में क्रूरताके दर्शन। क्रूर जन्तुओंसे बचकर रहना तथा
गाय आदि जन्तुओंको पालनेकी
शिक्षा। व्याघ्रादि द्वारा मनुष्योंका भक्षण । अपनी रक्षार्थ दण्ड आदिका प्रयोग
करनेकी शिक्षा। कल्प वृक्षोंकी कमीके कारण उनके कल्प वृक्षोंकी सीमाओंका विभाजन ।। स्वामित्व पर परस्पर में झगड़ा।
४४४६-४४७१०२-१०६ । क्षेमन्धर
५ ४५१-४५३ | १०७-१११ । सीमंकर
ति.प./४७४ हा, मा,
४५५-४५६ | ११२-११५ | सीमंधर
| ४५६
११६-११६ विमलवाहन
८४६२-४६३ / १२०-१२४ | चक्षुष्मात्
हा- हाय; मा= मतकर; धिक्-चिक्कार
वृक्षों की अत्यन्त हानिके कारण वृक्षों को चिह्नित करके उनके कलहमें वृद्धि।
स्वामित्वका विभाजन । गमनागमनमें बाधाका अनुभव। अश्वारोहण व गजारोहणकी शिक्षा
तथा वाहनोका प्रयोग। अबसे पहले अपनी सन्तानका सन्तानका परिचय दे कर भय दूर | मुख देखनेसे पहले ही माता-पिता | करना। मर जाते थे। पर अब सन्तानका मुख देखनेके पश्चात् मरने लगे। बालकोंका नाम रखने तक जीने लगे। बालकोंका नामकरण करनेको शिक्षा बालकोंका बोलना व खेलना देखने | बालकोंको बोलना ब खेलना तक जीने लगे।
सिखानेकी शिक्षा।
६४६७-४६८ | १२५-१२८ | १० ४७२-४७३ | १२६-१३३
यशस्वी अभिचन्द्र
त्रि. सा. हा, मा.
११ ४७८-४८१
१३४-१३८ । चन्द्राभ
धिक
| १२४८४-४८६ १३६-१४५ | मरुह व
१४६-१५१ । प्रसेनजित १५२-१६३ नाभिराय
१४ ४६६-५००
पुत्र-कलत्रके साथ लम्बे काल तक | सूर्य की किरणोंसे शीत निवारणकी जीवित रहने लगे। शीत वायु चलने | शिक्षा। लगी। मेघ, वर्षा, बिजली, नदी व पर्वत | नौका व छातोंकी प्रयोग विधि आदिके दर्शन।
तथा पर्वतपर सीढ़ियाँ बनानेकी
शिक्षा। बालकोंके साथ जरायुकी उत्पत्ति। | जरायु दूर करनेके उपायकी शिक्षा। १. नाभिनाल अत्यन्त लम्बा होने | १, नाभिनाल काटनेके उपायकी लगा।
शिक्षा। २. कल्पद्रुमोंका अत्यन्त अभाव। | २. औषधियों व धान्य आदिको
औषधि, धान्य व फलों आदि की | पहचान व विवेक कराया तथा उत्पत्ति।
उनका व दूध आदिका प्रयोग
करनेकी शिक्षा दी। स्व जात धान्यादिमें हानि । कृषि आदि षट् विद्याओंकी शिक्षा। मनुष्यों में अविवेककी उत्पत्ति। वर्ण व्यवस्थाकी स्थापना।
ऋषभदेव भरत
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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