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शलाका पुरुष
८. चौबीस कामदेव निर्देश
२. नारदों सम्बन्धी नियम
२. कुमार काक आदि परिचय
५.कुमार काल | ६. संयमकाल ७.तप भंगकाल |८. निर्गमन १ ति. प./४/१४४६-१४६७
१ति. प./४/ । २ ह. १/६०/५३६-५४५
१४६८ क्रमा
२त्रि, सा./८४० ३ ह. पु./६०/
५४६-५४७ १ २७६६६६६ पूर्व २७६६६६८ पूर्व | २७६६६६६ पूर्व सप्तम नरक २ | २३६६६६६, | २३६६६६८ २ ३६६६६६ ,
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६६६६८ ,
ति.प./४/१४७० रुद्दाबइ अइरुद्दा पावणिहाणा हवं ति सठवे दे। कलह महाजुज्झपिया अधोगया बासुदेव व्य ।१४७०।-ये सब अतिरुद्र होते हुए दूसरोंको रुलाया करते हैं और पापके निधान होते हैं। सभी नारद कलह एवं महायुद्ध प्रिय होनेसे वासुदेव के समान अधोगति
अर्थात् नरकको प्राप्त हुए ।१४७०) प. पु./११/११६-२६६ ब्रह्मरुचिस्तस्य कर्मी नाम कुटुम्बिनी (११७) प्रसूता दारकं शुभं ।१४। यौवनं च...१५३।.. प्राप्य क्षुल्लकचारित्रं जटामुकुटमुवहन ... ॥६५॥ कन्दर्पकोत्कृच्यमौखात्यन्तवत्सल... ।१५६। उवाचेति मरुत्वञ्च किं प्रारब्धमिदं नृप। हिंसन.. प्राणिवर्गस्य द्वार...१६११ नारदोऽपि ततः कश्चिन्मुष्टिमुद्गरताडनै :..।२५७१ श्रुत्वा रावणः कोपमागतः ...२६४॥ व्यमोचयन् दयायुक्ता नारद शत्रपजरात ।२६६ - ब्रह्मरुचि ब्राह्मणने तापसका वेश धारण करके इसको (नारदको ) उत्पन्न किया था। यौवन अवस्थामें ही क्षुल्लकके वत लिये ।१५३। कन्दर्प व कौत्कुच्य प्रेमी था ।१५६। मरुत्वान यज्ञमें शास्त्रार्थ करनेके कारण (१६०) पीटा गया।२५६॥ रावणने उस समय रक्षा की ।२६६। (ह. पु./४२/१४-२३) ( म. पू./६७/३५६-४५५) ।। त्रि. सा./८३५ कलहप्पिया कदाइंधम्मरदा वासुदेव समकाला। भब्बा णिरयगदि ते हिंसादोसण गच्छति ।३। -ये नारद कलह प्रिय हैं, परन्तु कदाचित् धर्म में भी रत होते हैं। वासुदेवों ( नारायणों) के समय में ही होते हैं। यद्यपि भव्य होनेके कारण परम्परासे मुक्तिको प्राप्त करते हैं, परन्तु हिंसादोषके कारण नरक गतिको जाते हैं ।८३५॥ (ह. पु./६०/५४९-५५०)। .
३३३३३, २८ लाख वर्ष
४. ३३३३३ ।
३३३३४, || २८ लाख वर्ष ६ २० , २० , , ७ | १६६६६६६ वर्ष १६६६६६८ बर्ष
२०७
१६६६६६६ वर्ष
। ६८ वर्ष) । ६६६ वर्ष ८ | १३३३३३३ वर्ष | १३३३३३४ वर्ष १३३३३३३ वर्ष 1 ६६६६६६ . ६६६६६८, ६६६६६६, । चतुर्थ , (ह. पु. ६६६६- (ह. पु./६६६६६८ वर्ष)
६६ वर्ष) ३३३३३३ वर्ष ३३३३३४ वर्ष ३३३३३३ वर्ष ७वर्ष ३४ वर्ष २८ वर्ष तृतीय,
(ह.पु. २८ वर्ष) | (ह. पु./३४ वर्ष)
७. एकादश रुद्र निर्देश १. नाम व शरीरादि परिचय
क्रम
१. नाम निर्देश १ति. प./४/१४३६-१४४१,
५२०-५२१ २ त्रि. सा./८३६ ३ ह. पु./६०/५३४-५३६
३, उत्सेध ४. आयु ति. प./४/- १ ति. प./४/१४४४-१४४५ १४४६-१४४७ । २ त्रि. सा./८३८/२ त्रि.सा./८३६) ३६. पु./६०/- ३ह.पु./६०/ । ५३५-५३८५३६-५४५
३. रुद्रो सम्बन्धी कुछ नियम ति, प./४/१४४०, १४४२ पीढो सच्चइपुत्तो अंगधरा तित्थकत्ति-समएमु ।...|१४४०। सम्वे दसमे पुग्वे रुदा भट्टा तवाउ विसयत्थं । सम्मत्तरयणरहिदा बुड्डा घोरेसु णिरएसु।१४४२। -ये ग्यारह रुद्र अंगधर होते हुए तीर्थकर्ताओंके समयोंमें हुए हैं।१४४०। सम रुद्र दशमें पूर्वका अध्ययन करते समय विषयों के निमित्त तपसे भ्रष्ट होकर सम्यक्त्व रूपी रत्नसे रहित होते हुए घोर नरकमें डूब
गए ।१४४२॥ ह. पु.६०/५४७ ...) भूर्यसंयमभाराणां रुद्राणां जन्मभूमयः। उन
रुद्रोंके जीवनमें असंयमका भार अधिक होता है, इसलिए नरकगामी होना पड़ता है। त्रि. सा./८४१ विज्जाणुवादपढणे दिट्ठफला णट्ठ संजमा भब्बा । कदिचि
भवे सिमति हु गहिदुझिय सम्ममहियादो 1८४१ ते रुद्र विद्यानुवाद नामा पूर्व का पठन होते इह लोक सम्बन्धी फलके भोक्ता भए । बहुरि नष्ट भया है, अङ्गीकार किया हुआ संजम जिनका ऐसे है । बहुरि भव्य है, ते ग्रहण करके छोड़ा जो सम्यक्त्व ताके माहास्म्यसे केतेइक पर्याय भये सिद्ध पद पायेंगे।
| त्रि, सा.
१०.धनुष
८३ ला० पूर्व
भीमावलि নিরন্তু
दे, तीथंकर
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वैश्वानर सुप्रतिष्ठ अचल | बल पुण्डरीक अजितंधर अजितनाभि | जितनाभि पीठ
८. चौबीस कामदेव निर्देश
1. चौबीस कामदेवोंका निर्देश मात्र ति.प/४/१४७२ कालेसु जिणवराणां चउवीसाणा हवं ति चउवीसा । ते पाहुबलिप्पमुहा कंदप्पा 'णिरुवमायारा ।१४७२। -चौबीस तीर्थकरों के समयों में अनुपम आकृतिके धारक वे बाहुमलि प्रमुख २४ कामदेव होते हैं।
(२-१...)
वर्ष
सात्यकि पुत्र
७ हाथ
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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