Book Title: Jainagama viruddha Murtipooja
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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आगेवान पटेलियाओ के एवा कोई जरूर हाजर होयज छे, अने तेमनी साक्षी सोगन खावानुं काम थाय ते । परन्तु कोई पण दुन्हेगारने प्रतिमाजी पासे एकलो मोकलीने गुन्हाना सम्बन्धमां सोगन खावानुं कहेवामां आवतुं नथी, तो पछी ज्यां एकान्त आत्मभावना छे, ज्यां ज्ञान दर्शननीज मुख्य महत्ता छे तेवाओने जड़ प्रतिमा पासे जइने एना साक्षीए आलोयणा करवानुं कोई सामान्य बुद्धि वालोए कबूल न करे तो पछी ज्ञानी देवतो मी आज्ञा करेज केम? अर्थात् नज करे । नथीज करी
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आ सम्बन्धी श्रीयुत् दोसीए जे जे युक्ति युक्त जवाब आप्या छे ते जरूर समजु विचारक ने तो मान्य थाय तेमछ, बीजाने माटे तो कहेवा जेवुंज शुं रहे छे जेने शास्त्रकारो एकान्त अधर्मी कहीने ओलखावेल छे तेवा परदेशी राजाए जे पाप कर्म नो क्षय कर्यो अने आत्माने कर्म थी हलवो बनाव्यो ते ज्ञानी समक्ष अन्तःकरण ना सांचा पश्चात्ताप थी। कोई पण प्रतिमानी साक्षीए नथी अर्थात् जड़ साक्षीए साक्षीज नथी, पण खरेखर आत्म वंचनाज छे ।
प्रतिमानी प्राचीनता
प्रतिमानी प्राचीनता कही बतावीने ते पूजनीय छे एम कहेवुं एतो भोला बालको ने भरमावी उन्मार्ग गामी बनावा जेवुं छे कारण के प्रतिमाजीनी प्राचीनत ए कोई महत्वनी बाबत नथी, कारण के घणी त्याज्य वस्तु पण प्रतिमाजी थीए अनन्त कालनी प्राचीन छे । पाप आश्रव बन्ध वगेरे घणा प्राचीन छे । सोमलादि विष झेरए पण बहुक लना जुना छे, एवी अनेक वस्तुओ अनादि कालनी प्राचीन छे पण तेथी ते ग्राह्य छे, वन्दनीय पूजनीय छे, एम कोई पण डाह्यो मनुष्य नज कहे। अने वस्तु स्वरूपे प्राचीन होयके न होय पण प्राचीन करी बताववुं
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