Book Title: Jainagama viruddha Murtipooja
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
[32] **************************************** अंगे भक्तों ने सैकड़ों अथवा हजारों ना जे खर्च करवा पड़े छे तेमां तेओने घणी राहत मले अने खर्ची घणोज ओछो थई जाय।
(२) बीजो लाभ साधु साध्वीजी साथे बोजो उपाड़नार गामोगाम थी जे माणसो-मजुरो लेवा पड़े छे अने ते मजुरो नुं खर्च जे केटलाक नाना गामों ने ते घणुज भारे पड़े छे ते पण ओछु थई जाय अने गामड़ा वाला ने ते खर्च मां थी घणी राहत मले।
एटले रेल विहार करनार ने आदर्श मानीने हवे सुविहित कहेवाता सत्पुरुषों पण रेल्वे विहार नी शुरुआत करी देवी जोइए पण हुँ धारुं छु त्यां सुधी सुविहित आचार्यों-संतों रेल्वे विहार करनार के ऐवा साधु धर्म थी विरुद्ध आचरण आचरनार ना कार्यनी कोई पण अनुमोदनाए करता नथी, तेमज धर्मप्राण लोंकाशाह ना कोई वंशज लोंकाशाह नी शुद्ध धर्म प्रणालिका थी विरुद्ध अने अशुद्ध आचरण आचरेके विपरीत परूपणा करे तेथी तेनो पुरावो सज्जनों तो नज आपे। अने तेना पुरावा थी पोताना कोई मान्यता सिद्ध करवा मांगे तो तेना माटे विचारवंतो तो जरूर हास्य ज करे। एटले प्रतिमाजी ना पूजन नी साबिती अर्थ लोकाशाह ना कोई श्रद्धाभ्रष्ट शिष्य नो पुरावो आपवो एतो नरी बाल चेष्ठाज छे।
आलोयणा आलोयणा एतो अंतःकरण नो पश्चात्ताप छ। साची आलोचना एतो अनंत जन्मांतरो ना पापने बालनार प्रबल अग्नि छ। ए पश्चात्तापए आलोचना कोई थी करावी शकाती नथी, आ जगत मां कोई एवी सत्ता नथी कोई एवी शक्ति नथी के कोई ना पाप नो नाश करावी शके। पाप कर्म ना नाश - अमोघ शस्त्र तो ए एकज छे। सांचा दिल नो
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org