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वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर में प्रतिपादित संस्कारों का तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन
(१) गृह्यसूत्र
वैदिक-परम्परा में सर्वप्रथम संस्कार शब्द का उल्लेख गृह्यसूत्रों में हुआ है, किन्तु वहाँ संस्कार शब्द का प्रयोग उसके वास्तविक अर्थ में न होकर मीमांसकों की भाँति पंच - भू-संस्कार एवं पाक संस्कार के रूप में हुआ है। प्राचीनकाल में लोगों के मनःपटल पर यज्ञों का गहरा प्रभाव था, “अतः वे समस्त गृह्य विधि-विधानों का वर्गीकरण विविध यज्ञों के नामों के अन्तर्गत करते थे । दैहिक-संस्कारों का भी अन्तर्भाव उन्होंने पाकयज्ञों में ही कर लिया था । ४ पारस्कर गृह्यसूत्र में पाकयज्ञों को चार भागों में बाँटा गया है- (१) हुत (२) आहुत (३) प्रहुत एवं (४) प्राशित, किन्तु बौधायन गृह्यसूत्र में इन यज्ञों को सात भागों में वर्गीकृत किया गया है। वे सात प्रकार हैं- (१) हुत (२) आहुत (३) प्रहुत (४) शूलगव ( ५ ) बलिहरण ( ६ ) प्रत्यवरोहण एवं (७) अष्टाहोम | गृह्यसूत्र में प्रथम तीन की व्याख्या इस प्रकार दी गई है
" जब यज्ञ में आहुति दे दी जाती है, तो उसे हुत कहते हैं। उन्होंने इसके अन्तर्गत विवाह से सीमन्तोन्नयनपर्यन्त संस्कारों को समाविष्ट माना है। अग्नि में आहुति देने के पश्चात् जब ब्राह्मणों तथा अन्य व्यक्तियों को दान वगैरह दिया जाता है, तो उसे प्रहुत कहा जाता है। इसमें उन्होंने जातकर्म से लेकर चौल - कर्म तक के सम्पूर्ण संस्कारों का समावेश माना है। हुत एवं प्रहुत के बाद जब कोई स्वयं अन्य व्यक्तियों से उपहार प्राप्त करता है, तो उसे आहुत कहते हैं। इसके अन्तर्गत उपनयन एवं समावर्तन संस्कार का समावेश किया गया है। १५ इस प्रकार हम देखते हैं कि गृह्यसूत्रों में जिन्हें गृह्ययज्ञों के रूप में उल्लेखित किया गया था, कालान्तर में उन्हीं को संस्कार के नाम से जाना जाने लगा।
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वैखानस से पूर्व प्रायः सभी गृह्यसूत्रों में दैहिक - संस्कारों एवं देवाराधन हेतु किए जाने वाले यज्ञों को एक ही माना जाता था, वे उनमें कोई अन्तर नहीं मानते थे। सर्वप्रथम वैखानस - स्मार्तसूत्रों में ही दैहिक - संस्कारों तथा विभिन्न अवसरों पर देवाराधन हेतु किए जाने वाले यज्ञों में स्पष्ट विभेद किया गया है। इन सूत्रों में न केवल ऋतुसंगमन अथवा गर्भाधान से विवाह तक के अठारह संस्कारों का उल्लेख हुआ है, वरन् इनमें स्वतंत्र रूप से बाईस यज्ञों यथा
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हिन्दू संस्कार, डॉ. राजबली पाण्डेय, अध्याय-दो (द्वितीय परिच्छेद), पृ. २०, चौखम्भा विद्याभवन, वाराणसी, पंचम संस्करण १६६५.
१५ हिन्दू संस्कार, डॉ. राजबली पाण्डेय, अध्याय-दो ( द्वितीय परिच्छेद), पृ. २०, चौखम्भा विद्याभवन, वाराणसी, पंचम संस्करण १६६५.
१६ हिन्दू संस्कार, डॉ. राजबली पाण्डेय, अध्याय-दो ( द्वितीय परिच्छेद), पृ. २१, चौखम्भा विद्याभवन, वाराणसी, पंचम संस्करण १६६५.
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