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. ३. विषयस्वरूप-सभी निर्विकल्पकवादी सत्तामात्रको निर्विकल्पका विषय मानते हैं पर सत्ताके स्वरूपके बारेमें सभी एक मत नहीं। अतएव निर्विकल्पक के ग्राह्य विषयका स्वरूप भी भिन्न-भिन्न दर्शन के अनुसार जुदा-जुदा ही फलित होता है। बौद्ध परम्पराके अनुसार अर्थक्रियाकारित्व ही सत्त्व है और वह भी क्षणिक व्यक्तिमात्रमें ही पर्यवसित है जब कि शंकर वेदान्तके अनुसार अखण्ड और सर्वव्यापक ब्रह्म ही सत्त्वस्वरूप है, जो न देशबद्ध है न कालबद्ध । न्याय वैशेषिक और पूर्व मीमांसकके अनुसार अस्तित्वमात्र सत्ता है या जातिरूप सत्ता है जो बौद्ध और वेदान्तसम्मत सत्तासे भिन्न है। सांख्य-योग और जैनपरम्परामें सत्ता न तो क्षणिक व्यक्ति मात्र नियत है, न ब्रह्मस्वरूप है और न जाति रूप है । उक्त तीनों परम्पराएँ परिणासिनित्यत्ववादी होनेके कारण उनके मतानुसार उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यस्वरूप ही सत्ता फलित होती है। जो कुछ हो, पर इतना तो निर्विवाद है कि सभी निर्विकल्पकवादी निर्विकल्पकके ग्राह्य विषय रूपसे सन्मात्रका ही प्रतिपादन करते हैं । ___४. मात्र प्रत्यक्षरूप--कोई ज्ञान परोक्षरूप भी होता हैं और प्रत्यक्षरूप भी जैसे सविकल्पक ज्ञान, पर निर्विकल्पक ज्ञान तो सभी निर्विकल्पकवादियोंके द्वारा केवल प्रत्यक्ष-रूप माना गया है। कोई उसकी परोक्षता नहीं मानता, क्योंकि निर्विकल्पक, चाहे लौकिक हो या अलौकिक, पर उसकी उत्पत्ति किसी ज्ञानसे व्यवहित न होने के कारण वह साक्षात्रूप होनेसे प्रत्यक्ष ही है। परन्तु जैन परम्पराके अनुसार दर्शनकी गणना परोक्षमें भी की जानी चाहिए, क्योंकि तार्किक परिभाषाके अनुसार परोक्ष मतिज्ञानको सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष कहा जाता है अतएव तदनुसार मति उपयोगके क्रममें सर्वप्रथम अवश्य होनेवाले दर्शन नामक बोधको भी सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष कहा जा सकता है पर आगमिक प्राचीन विभाग, जिसमें पारमार्थिक-सांव्यवहारिकरूपसे प्रत्यक्ष के भेदोंको स्थान नहीं है, तदनुसार तो मतिज्ञान परोक्ष मात्र ही माना जाता है जैसा कि तत्वार्थसूत्र ( १. ११) में देखा जाता है । तदनुसार जैनपरम्परामें इन्द्रियजन्य दर्शन परोक्षरूप ही है प्रत्यक्षरूप नहीं । सारांश यह कि जैन परम्परामें तार्किक परिभाषाके अनुसार दर्शन प्रत्यक्ष भी है और परोक्ष भी। अवधि और केवल रूप दर्शन तो मात्र प्रत्यक्षरूप ही हैं जब कि इन्द्रियजन्य दर्शन परोक्षरूप होने पर भी सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष माना जाता है। परन्तु श्रागमिक परिपाटीके अनुसार इन्द्रियजन्य दर्शन केवल परोक्ष हो है और इन्द्रियनिरपेक्ष अवध्यादि दर्शन केवल प्रत्यक्ष ही हैं।
५. उत्पादक सामग्री-लौकिक निर्विकल्पक जो जैन तार्किक परम्पराके
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