________________
... प्रवृत्ति-निवृत्ति
५१५
एक तापस जो पंचाग्नि तप कर रहा है उसके आस-पास जलने वाली बड़ी-बडी लकड़ियों में साँप भी जल रहा है। उस समय पार्श्वनाथ ने चुपकी न पकड़ कर तात्कालिक प्रथा के विरुद्ध और लोकमत के विरुद्ध आवाज उठाई और अपने पर आने वाली जोखिम की परवाह नहीं की। उन्होंने लोगों से स्पष्ट कहा कि ऐसा तप अधर्म है जिसमें निरपराध प्राणी मरते हों । इस प्रसङ्ग पर पार्श्वनाथ मौन रहते तो उन्हें कोई हिंसाभागी या मृषावादी न कहता। फिर भी उन्होंने सत्य भाषण का प्रवृत्ति-मार्ग इसलिये अपनाया कि स्वीकृत धर्म की पूर्णता कभी केवल मौन या निवृत्ति से सिद्ध नहीं हो सकती।
चतुर्याम के पुरस्कर्ता ऐतिहासिक पार्श्वनाथ के बाद पंचयाम के समर्थक भगवान् महावीर पाते हैं। उनके जीवन की कुछ घटनाएँ प्रवृत्तिमार्ग की दृष्टि से बहुत सूचक हैं। महावीर ने समता के आध्यात्मिक सिद्धान्त को मात्र व्यक्तिगत न रखकर उसका धर्म दृष्टि से सामाजिक क्षेत्र में भी प्रयोग किया है। महावीर जन्म से किसी मनुष्य को ऊँचा या नीचा मानते न थे । सभी को सद्गुण-विकास और धर्माचरण का समान अधिकार एक-सा है-ऐसा उनका दृढ़ सिद्धान्त
था। इस सिद्धान्त को तत्कालीन समाज-क्षेत्र में लागू करने का प्रयत्न उनकी • धर्ममूलक प्रवृत्ति की बाजू है। अगर वे केवल निवृत्ति में ही पूर्ण धर्म समझते
तो अपने व्यक्तिगत जीवन में अस्पृश्यता का निवारण करके संतुष्ट रहते । पर उन्होंने ऐसा न किया। तत्कालीन प्रबल बहुमत की अन्याय्य मान्यता के विरुद्ध सक्रिय कदम उठाया और मेतार्य तथा हरिकेश जैसे सबसे निकृष्ट गिने जानेवाले अस्पृश्यों को अपने धर्म संघ में समान स्थान दिलाने का द्वार खोल दिया। इतना ही नहीं बल्कि हरिकेश जैसे तपस्वी आध्यात्मिक चण्डाल को छुआछूत में पानखशिख डूबे हुए जात्यभिमानी ब्राह्मणों के धर्मवाटों में भेजकर गाँधीजी के द्वारा समर्थित मन्दिर में अस्पृश्य प्रवेश जैसे विचार के धर्म बीज बोने का समर्थन भी महावीरानुयायी जैन परम्परा ने किया है । यज्ञ यागादि में अनिवार्य मानी जानेवाली पशु आदि प्राणी हिंसा से केवल स्वयं पूर्णतया विरत रहते तो भी कोई महावीर या महावीर के अनुयायी त्यागी को हिंसाभागी नहीं कहता। पर वे धर्म के मर्म को पूर्णतया समझते थे। इसीसे जयघोष जैसे वीर साधु यज्ञ के महान् सभारंभ पर विरोध की व संकट की परवाह बिना किए अपने अहिंसा सिद्धान्त को क्रियाशील व जीवित बनाने जाते हैं। और अन्त में उस यज्ञ में मारे जानेवाले पशु को प्राण से तथा मारनेवाले याज्ञिक को हिंसावृत्ति से बचा लेते हैं। यह अहिंसा की प्रवृत्ति बाजू, नहीं तो और क्या है ? खुद महावीर के समक्ष उनका पूर्व सहचारी गोशालक अाया और अपने आपको वास्तविक स्वरूप से छिपाने का
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org