Book Title: Darshan aur Chintan Part 1 2
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Sukhlalji Sanman Samiti Ahmedabad

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Page 930
________________ [ ५८० ] womers द्वारा ११ अंग का पठन १७ । ध्यानशतक २७८ द्वादशारनयचक्र टीका ४५१ ध्रुव ५००, ५०४ द्वादशांगी १७ नकुलाख्यान ८४ द्वेष ४३४ नंदी ३७८, ४०१, ४०५, ४४७,४४८ द्वैतगामी १६३ चूर्णी ४४८ द्वैतवाद ४३७ टीका ३०३, ३०५, ३२४, ३७८, द्वैतवादी १२४ ४०१, ४२३, ४४७ का जैन के साथ अकमत्य १२४ वृत्ति हरिभद्र ३०७,३१६, ३८२, ४४८ द्वैताद्वैत ५०१ नमस्कार ५३१ धनजी सूरा ४५५ का स्वरूप ५३१ धम्मपद ११० द्वैत-अद्वैत ५३१ धर्म १३४, ४६६, ५४१ नय १७०-१७२, ३०६, ३१६, के दो रूप ५४१ __ चेतना के दो लक्षण ५४१ नैगमनय १७० धर्मकथा २४८ धर्मकीर्ति १५५, ३६५, ३६७, ३८५, शब्दनय अर्थनय १७१ व्यवहारनय १७० ३८७, ४११, ४३५, ४५६, ४७३, ४७८ संग्रहनय १७० ऋजुसूत्रनय १७१ धर्मकीर्ति (जैन) २४४ धर्मघोष २४४ समभिरूढ अवंभूत १७१ धर्मबिन्दु ३७८ द्रव्यार्थिक पर्यायार्थिक १७१,३०६ धर्मसंग्रह १८७ ज्ञान-क्रियानय १७२ धर्मसंग्रहणी ३३२, ३८२ व्यवहार-निश्चय ३१६ धर्मसंन्यास २६१ नयचक्र ३६४, ४२६, ४६१ ताविक अतात्त्विक २६१ नयप्रदीप ३७७ धर्माधर्म २२५ नयरहस्य ३७७ धर्मानुसारी २६४ नयवाद १२३, १५४, ३६४, ३६८, धर्मानंद कौशाम्बी ७, १३, ८० ५०२ धर्मोत्तर २६७ में भारतीय दर्शनों का समावेश १५४ धवला १८, १६, ४६६, ४७० धारावाही ४२२ में सात नय ५०२ ध्यान २७७ नयविजय ४५५ शुभाशुभ २७७, २६०-२६३ नयामृततरंगिणी ३७७ चार भेद २७७ | नागार्जुन ८६, ३५१, ३५२ - - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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