Book Title: Darshan aur Chintan Part 1 2
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Sukhlalji Sanman Samiti Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 935
________________ प्रमाणवार्तिक ३८७, ४११, ४३५, ४७२, ४७३ प्रमाणविद्या १३० प्रमाण विनिश्चय ३६७, ३८५ प्रमाणविभाग ३६९, ३७०, ३८१ प्रत्यक्ष परोक्ष ३७० चतुर्विध ३८१ प्रमाणशास्त्र ४७८ प्रमाणसमुच्चय ३८७, ४७२ प्रमाणसंग्रह ३८४, ३८५, ४८६ प्रमाण संप्लव ४८१ प्रमाणोपप्लव ३५२, ३५४ प्रमालक्षण ३८७ प्रमाद २७२, ४१४ प्रमेय ३५४, ३७२ का स्वरूप ३७२ के प्रदेश का विस्तार ३५४ प्रवचनसार ५२२ [५८५] प्रवर्तक धर्म १३४, १३६, २०७-२०१ समाजगामी १३६ त्रिपुरुषार्थवादी २०८ प्रशस्तपाद ४२८ प्रशस्तपादभाष्य २१२, ३८३, ४०४, ४२५ प्रसुप्त ३६६ प्रातिभासिक ४३८ प्रामाण्यनिश्चय ४२३ का उपाय ४२३ स्वतः परतः में अनेकान्त ४२३ प्रावादुक ३६७ प्रि दिङ्नाग बुद्धिस्ट लोजिक ४५६ प्रेमी ४६३, ४६५, ४६६ "फूलचन्द्रजी ५३७ - बन्धमोक्ष १२६ Jain Education International जैन जैनेतर दृष्टि से १२६ बन्धस्वामित्व २५२ का परिचय २५२ धहेतु ३४२, ४६४ विवरण में मतभेद ३६४ बहादुर सिंहजी सिंघी ४८२ बहिद्धादाण १४ बहिरात्मभाव २२४, २६५ बहिरात्मा २७९, ४३९ बहिर्दृष्टि १७६ बहुकाय निर्माणक्रिया ३३० बार्हस्पत्य ४३४ बालमरण ५३४ बाहुबली १२२ बुद्ध ६, ४२, ४५, ५४, ५७, ५८, ७९, ६१-६३, ६, १५१, २३१, २३४, ३२७, ५१०, ५३६ द्वारा पार्श्वपरंपरा का स्वीकार ६ तप की अवहेलना ६ और महावीर ५४, ५७ निर्ग्रन्थ परम्पराका प्रभाव ५८ की अन्तिम भिक्षा में मांस ७६ की तपस्या के द्वारा जैन तपस्या का आचरण ६२ सारनाथ में धर्मचक्रप्रवर्तन ९२ द्वारा निर्मन्थ तपस्या का खण्डन ६३ द्वारा ध्यानसमाधि ९६ स्त्री सन्यास का विरोध ३२७ बुद्धघोष ८०, ८१ बुद्धचरित ( कौशाम्बी ) ५८, ६० बुद्ध निर्वाण ४७ बुद्धवचन ४८४ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 933 934 935 936 937 938 939 940 941 942 943 944 945 946 947 948 949 950