Book Title: Darshan aur Chintan Part 1 2
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Sukhlalji Sanman Samiti Ahmedabad

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Page 928
________________ [ ५७८ ] विचार का विकास दो मार्ग से | तस्वार्थभाष्य ३८१, ३८५, ४४२, ३७९ विकास की भूमिकाएँ ३८० टीकाकार ४६६ सामान्य चर्चा ३६१ तरवार्थाधिगम सूत्र ४०१ की अवस्थाएँ ३९१ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक ४११, ४२०, ४२४, ४६१ आवारक कम ३९२ तत्त्वार्थसूत्र ६०, ४२६ श्रावृतानावृतत्व ३९३ तत्त्वोपप्लव ३५४, ३६८ अपूर्ण ज्ञान का तारतम्य ३९५ तत्त्वोपप्लववादी ३५४ ज्ञानप्रवाद ३७८ तथागत बुद्ध १०७ ज्ञानबिन्दु ३०७, ३७५, ३८१, ४५४ तनु ३६६ का परिचय ३७५ तप ६०-६२, १५, १११,४०८, ४०१ रचना शैली ३८६ बौद्ध द्वारा जैन तप का निर्देश १० ज्ञानसार १८४, २७५, २७६,२८४, जैन श्रमणों का विशेष मार्ग १ २८५, २८६ महावीर के पहले भी ६२ ज्ञानार्णव २७६, ३७७ बाह्य और आभ्यन्तर ज्ञानावरण ३६३ केवल जैन मान्य नहीं १११ ज्ञानोत्पत्ति ४५४ बुद्ध द्वारा नया अर्थ १११ डभोई ४५६ तपस्वी २०६ Dictionary of Pali Proper | तपागच्छ २४३ names & तर्क २३० ढंक ३१ तर्कभाषा ३१५, ४५६ तंत्रवार्तिक ८५ - मोक्षाकर ४५६ तत्त्वचिन्तक ४२४ केशवमिश्र ४५६ भौतिक व आध्यात्मिक दृष्टि वाले । तर्कशास्त्र ४५६ ४२४ तर्कसंग्रह दीपिका १७२ तत्त्वबिन्दु ३७७ तात्पर्य टीका ३६६ तत्त्वविजय ४५६ तिलक (लोकमान्य) ७६, ५१८ तत्त्वसंग्रह १५०, ३६३, ४०३, ४२४, | तीर्थकर ५१२ ४२८-४३०, ४३५, ४४५, ४७८ तुगिया ६, १० पञ्जिका ३६३, ४२६ तृष्णा २८० तत्त्वार्थ ११५, २७७, २७८, २८२, तेंगलै ८५ . ३०१,३०३,३१७,३१८,३२०, तेजाकाय ३४२ ३२४,३३५, ३८०,३८१, ३८४ वैक्रिय विषयक श्वे० दिग० मततत्त्वार्थ टीका (सिद्धसेन )३०७ भेद ३४२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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