Book Title: Darshan aur Chintan Part 1 2
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Sukhlalji Sanman Samiti Ahmedabad

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Page 927
________________ [ ५७७ ] .. और प्रास्मा ५२७ जैनगुर्जर कविप्रो ४५६ जीवन्मुक्ति ३१७ जैनतत्त्वादर्श ५२९ दार्शनिक मतों की तुलना ३९. जैनतर्कभाषा ३८४, ३८८,४५५, ४५९ जीवभेदवाद ३७३ का परिचय ४५९ जीवस्थान २६१ जैनतकवार्तिक ३८७ जीवात्मा ३७३ जैन तर्कसाहित्य ३६३ जुगलकिशोर मुख्तार १५ के युग ३६३ जेकोबी ४८८, ४८९ जैनदर्शन २१२, ३५४, ३६०, ४६८ जैन ५०, १३२, १३३, १४० उभयाधिपत्य पक्ष में ३५४ १४३, १४७, १५७, १५६,३४९, ३५०,३६६, ४३३,४७२, ५०४, का परिणामवाद ३६० ५१४,५१८,५१६ जैनधर्म ५४, ११६, १२३, १२६, 'संस्कृति का हृदय' १३२ १३०, १४९, २०६, ५४१ संस्कृति का स्रोत १३२ और बौद्ध धर्म ५४ संस्कृति के दो रूप १३२ का प्राण ११६ संस्कृति का बाह्यरूप १३३ की चार विद्या १२३ संस्कृति का हृदय, निवृत्ति १३३ और ईश्वर १३० संस्कृति का प्रभाव १४१, १४२ का मूल अनेकान्तवाद १४९ बौद्ध दोनों धर्म निवर्तक १४० . को गांधीजी की देन ५४१ परंपरा के श्रादर्श १४७ जैनप्रकाश 'उत्थान' महावीरांक ११ संप्रदायों के परस्परमतभेद १५७ । जैनश्रमण का मत्स्यमांसग्रहण ६० प्रवृत्ति मार्ग या निवृत्ति मार्ग १५६ जैनसाहित्य प्राकृत-संस्कृत युग का दृष्टि का स्वरूप ३४९ अन्तर ४७६ दृष्टि की अपरिवर्तिष्णुता ३५० की प्रगति ४८३ श्राचार्यों की भारतीय प्रमाण | जैनागम शास्त्र में देन ३६६ संसद ४८९ आचार्यों के ग्रन्थों का अनुकरण | और बौद्धागम ५५ : नहीं ४७२ जैनाचार्य का शासन भेद १५ प्राचार्यों के ग्रन्थों का अनुकरण जैनामास ८७ ४७२ अने ब्राह्मण ५०४ | जैनिस्मस २०६ ज्ञानभंडार, मंदिर, स्थापत्य व | ज्ञान २२९, ३७९, ३८०, ३९१० कला ५१८ ३९३, ३९५ व्यापक लोकहित की दृष्टि ५१६ । के पाँच भेद ३७६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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