Book Title: Darshan aur Chintan Part 1 2
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Sukhlalji Sanman Samiti Ahmedabad

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Page 926
________________ [ ५७६ ] चन्दनबाला ३१ | जगदीशचन्द्र बसु २३३, ३०० चंद्रगुप्तमौर्य ८७ जगन्नाथ ४६४ चरक ३५१ जमालि ११४, ५५६ चाण्डाल ४६ जयंत ३६८, ३९१ चातुर्याम १२, १४, ४६, १७, १८, | जयघोष ५१५ १००, ५२५ जयचन्द्र विद्यालंकार ४६६ का पंचयाम महावीर द्वारा १२ जयन्त भट्ट २०५ बौद्ध वर्णन १७ जयन्ती ३२ पार्श्व परम्परा के हैं ८ जयपराजय व्यवस्था ३७२ का गलत अर्थ १०० जयराशि भट्ट ३५४, ३६८ चातुर्यामिक ८ जयसोमसूरि ३१७ चरित्र १२७, ३३५, ५०४ जरथोस्त ५१ . उपशमक और क्षपक ३३५ जरथोस्थियन २०७, ४०७ . के दो अंग ५०४ जल्प १५३ चार्वाक ३४९, ३५२, ३५३, ३५४, जसवंत ४५५ ३६८, ४३४ जहाँगीर ७७ अकदेशीय ३६८ जातिभेद ४० चालना ४०७, ४०८ जातिवाद ४६ चिंतामणि ४६१ का जैनों के द्वारा खण्डन ४६ चितामय ४११ जिन १२० चिकित्साशास्त्र ४३४ जिनकल्पी ५३५ चित्त ३५३ जिनदास ४४४ चुन्द ७६ जिनभद्र १२१, २००, ३०५, ३०६, बुद्ध को अंतिम भिक्षा देनेवाला ३२५, ३६४,३८४,३८६, ४२६, ४४४, ४४६,४४७,४५१,४५२, चुल्लवग्ग ४८४ चूर्णिकार ६१ का विशेषावश्यक भाप्य २०० चेटक ५,३१ और अकलंक छछ ५३६ जिनभद्रीय ३८० छानस्थिक उपयोग ३४० जिनेश्वर सूरि ३८७ छायादर्शन ५२७ जीव ३३७, ३४०, ५२२, ५२५, ५२७ जंबूविजयजी ४६१ में श्रौदयिकादि भाव ३३७ जगडुशाह ५१७ और पंचपरमेष्ठीका स्वरूप ५२२ जगत्चन्द्र सूरि २४१, २४३ का लक्षण ५२९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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