Book Title: Darshan aur Chintan Part 1 2
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Sukhlalji Sanman Samiti Ahmedabad

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Page 921
________________ [ ५७१ ] आर्यसमाज ८३ टीका ग्रन्थ १६६ आवरण ३६२, ३६३ आबृतानावृतत्व ३९३, ३६४ क्लेशाबरण ज्ञेयावरण ३६३ विरोधपरिहार ३९३ संस्कार रूप ३६३ वेदान्त में अनुपपत्ति ३६४ अभावरूप ३६३ आशय १२५ जडद्रव्यरूप ३६३ पासव ६ मूल अविद्या ३६३ पानवबन्ध ४९८ ज्ञानावरणके पर्याय ३६३ आहार ६०, ३४० श्रावरणक्षय ४३१ सामिष निरामिष ६० श्रावर्जितकरण ३२६ श्रावश्यक १७४, १७५, १७६, १७७, | आहारक ३२३ १६०, १९४, २००, केवली के आहार का विचार ३२३ की अन्य धर्म से तुलना १७४ । इतिहास ६२ दिगम्बर और श्वेताम्बर १७४ का अंगुली निर्देश ६२ स्थानकवासीमें १७५ इदमित्थंवादी ३४९ का अर्थ १७६ इन्डियन फिलोसोफी ( राधाकृष्णन) के पर्याय १७७ इन्द्र ५०३ का इतिहास १६० १६४ इन्द्रमूति ३१, ३७, ३८, ४० के विषय में श्वे. दिग० २०० इन्द्रभूति गौतम ६, १० आवश्यककरण ३२६ इन्द्रिय २२२, ३०० आवश्यक क्रिया १७४, १७७, १८०, द्रव्यभाव ३०० १८२ इन्द्रियज्ञान ३७१।। सामायिकादिका स्वरूप १०७ सामायिकादिके क्रम की उप- इन्द्रियाधिपत्य ३५५ का व्यापार क्रम ३७१ पत्ति १८० | ईश्वर २१२, २१३, २१८, ३५३, की आध्यात्मिकता १८२ ३७३, ४२८, ५५४ आवश्यक नियुक्ति १७७, २९४, ३०६, ईश्वरभाव २२३ ३७८, ४०१, ४०५, ५०२ उत्क्रान्तिमार्ग २४६ आवश्यकवृत्ति १७५, २००, २६८ | उत्क्रान्तिवाद १२४ ३०६, ३२६, ( शिष्यहिता )। के मूल में प्रात्मसाम्य १२४ २०. २९८, ३०१ उत्तराध्ययन ५, ४५, ४६, ४७, ५८, आवश्यक सूत्र १९४, १९५,१९७,१६६ ८६,६४, ६५, १८, १०८, ऐतिहासिक दृष्टि से विचार १६५ ११०, ११२, १२२, २६३, २६६ मूल कितना १९७, 'उत्थान' (महावीरांक) १८ ImaARADAS Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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