Book Title: Darshan aur Chintan Part 1 2
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Sukhlalji Sanman Samiti Ahmedabad

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Page 923
________________ २१४ [ ५७३ ] कपिल १२० परलोकवादी द्वारा स्वीकृत २०७ कपिलवस्तु ५ चार्वाक द्वारा अस्वीकृत २०७ . कम्मपयडी ३१६ वादी के दो दल २०७ कर्पूरमारी ४८६ की परिभाषाओं का साम्य २१० करणअपर्याप्त ३०३, ३४२, दार्शनिकों के मतभेद २११ दिगम्बर मत ३०४, कर्मप्रकृति २४० करणपर्याप्त ३०३ कर्मप्रवाद २११, ३७८ कर्म १०६, १२६, १२८, २१२, कर्मवाद ४०, २१३,२१४,२१६,२१८, २२४, २२५, २२५, २२७, २२८, २२६, २३६, ३६, के तीन प्रयोजन २१८ पर आक्षेप समाधान २१३ त्रिविध १०२, का व्यवहार, परमार्थ में उपयोग जैन जैनेतर दृष्टि से विचार १२६ के समुत्थान का काल और साध्य श्रात्मा का संबंध १२८ शब्द का अर्थ २२४ कर्मविद्या १२५ शब्द के पर्याय २२५ कर्मविपाक २३८, २४० का स्वरूप २२५ का परिचय २३८ का अनादित्व २२७ गर्गर्षिकृत २४० बन्ध के कारण २२८ कर्मशास्त्र २१६, २२० २२.१ से छूटने का उपाय २२६ २२२, २२३ जैनदर्शन की विशेषता २३६ का परिचय २१६ क्रियमाण संचितादि २३६, संप्रदाय भेद २२० शक्ति, दर्शनों के मत ३९८ संकलना २२० विषयक परंपरा ३६२ भाषा २२१ द्रव्यभाव ३६३ शरीर, भाषा, इन्द्रियादिका विचार . कर्मकाण्डी २०८ २२२ कर्मग्रन्थ ३३४, ३४१, ३४२, ३४४, अध्यात्मशास्त्र २२३ ३४५, ५२७ कर्मशास्त्रानुयोगधर २१० विषयकी पञ्चसंग्रह से तुलना ३४४ | कर्मशास्त्रीय ३८० चौथे के विशेष स्थल ३४५ कर्मसिद्धान्त २१० कर्मग्रन्थिक ३४४ कर्मस्तव २४५, २४६ और सैद्धान्तिकों के मतभेद ३४४ का परिचय २४५ कर्मतत्त्व २०५, २०७, २१०, २११ प्राचीन २४६ ____ का अतिहासिक दृष्टि से विचार २०६ / कल्पभाष्य ४१८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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