Book Title: Darshan aur Chintan Part 1 2
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Sukhlalji Sanman Samiti Ahmedabad

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Page 920
________________ • WM [ ५७० ] द्वैत और अद्वैत दृष्टि से १२५ । श्रात्मविद्या १२३, १२४ जैनधर्म के अनुसार ४०८ उत्क्रान्तिवाद १२४ स्वरूप और विकास ४१२ आत्मसमानता १२४ विचार की क्रमिक भूमिका ४१६ के आधार पर अहिंसा १२४ जैन बिचार व वैदिक विचार को श्रात्मस्वरूप १२७ तुलना ४१७ दार्शनिकों के मत १२७ जैन रष्टि से ४०६ श्रात्मा २१८, २२३, २२६, २३२, गांधीजी की दृष्टि से ५१० २४८;२७६,२७८,४३६,५९५, ५२७ अहिंसावादी ५०४ स्वतंत्र २२६ अहेतुवाद १६३, ५५० अस्तित्व में प्रमाण २२६ पागम ६४, ७०, ७२, १५३, के विषय में विज्ञान २३२ २५६, ३७१,३८३, ४०३, ४२० का त्याग दिगम्बर द्वारा तीन अवस्थाएं, (बहिरास्म, अन्त ६४ की प्राचीनता रात्म व परमात्म) २७६ प्रामाण्य विचार दर्शनान्तर से तुलना २७८ जैन नेतर तुलना और जीव ५२५ ४२० अस्तित्व ५२७ आगमप्रामाण्य ३६ श्रागमयुग ३६३ श्रात्माद्वैतवादी १२४ आगमवाद १६६ __ अहिंसा का समर्थन १२४ आगमाधिपत्य ३५२, ३५३ आत्मौपम्य ४१३ प्रागमिक ५५, ३८० आदित्यपुराण ८५ साहित्यका ऐतिहासिक स्थान ५५ | आध्यात्मिक उत्क्रान्ति १२८ आगरा ४५६ श्रापणो धर्म ५०४ आग्रायणीय पूर्व २११ आपस्तम्ब ४४ श्राचार (पाश्र्वका) प्राप्तपरीक्षा ३६७, ४७१, ४७४, ४७७ विचार बौद्ध दृष्टि से १६ प्राप्तमीमांसा ३६४, ४४३, ४६५, आचारांग ५, १३, ३८, ३६, ४०, ४७४, ४७४, ४७७, ५५१ ४७, ५१, ६१, ६८, ६६, ७४, | आयु ३४३ ८८,८६,६६,६७,१२१, १२२, प्रायोजिकाकरण ३२१ १२४,४१३, ५०४,५०४, ५५५ | प्रारंभवाद ३५५, ३५६, ३५६, आचारांग नियुक्ति ३०२ का स्वरूप ३५६ आचारांग वृत्ति ३०१ आदि वादों का क्रम ३५६ प्राजीवक १२, ५० आर्य उपोसथ १०२, १०३ आत्मघात ५३३ भार्यरक्षित ३८१, १०६, ४८५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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