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सामिष - निरामिष- श्राहार
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एक-सा स्थान देता है। इतना ही नहीं बल्कि वह श्वेताम्बरीय सम्प्रदाय भी दिगंबर संप्रदाय के जितना ही मांस-मत्स्यादि की खाद्यता का प्रचार व समर्थन करता है । और हिंसा सिद्धान्त की प्ररूपणा व प्रचार में वह दिगम्बर परम्परा से आगे नहीं तो समकक्ष तो अवश्य है । ऐसा होते हुए भी श्वेताम्बर परम्परा के व्याख्याकार श्रागमों के अमुक सूत्रों का माँस मत्स्यादि परक अर्थ करते हैं सो क्या केवल अन्य परम्परा को चिढ़ाने के लिए ? या अपने पूर्वजों के ऊपर खाद्य खाने का आक्षेप जैनेतर संप्रदायों के द्वारा तथा समानतंत्री संप्रदाय के द्वारा कराने के लिए ?
प्राचीन अर्थ की रक्षा
पूज्यपाद के करीब आठ सौ वर्ष के बाद एक नया फिरका जैन संप्रदाय में पैदा हुआ, जो श्राज स्थानकवासी नाम से प्रसिद्ध है । उस फिरके के व्याख्याकारों ने श्रगमगत मांस-मत्स्या दिसूचक सूत्रों का अर्थ अपनी वर्तमान जीवन प्रणाली के अनुसार वनस्पतिपरक करने का आग्रह किया और श्वेताम्बरीय आगमों को मानते हुए भी उनकी पुरानी श्वेताम्बरीय व्याख्याओं को मानने का आग्रह न रखा । इस तरह स्थानकवासी सम्प्रदाय ने यह सूचित किया कि आगमों में जहाँ कहीं मांस मत्स्यादि सूचक सूत्र हैं वहाँ सर्वत्र वनस्पति परक ही विवक्षित है और मांस-मत्स्यादिरूप अर्थ जो पुराने टीकाकारों ने किया है वह हिंसा सिद्धान्त के साथ असंगत होने के कारण गलत है । स्थानकवासी फिरके और दिगम्बर फिरके के दृष्टिकोण में इतनी तो समानता है ही कि मांसमत्स्यादिपरक अर्थ करना यह मात्र काल्पनिक है और हिंसक सिद्धान्त के साथ बेमेल है, पर दोनों में एक बड़ा फर्क भी है। दिगम्बर संप्रदाय को अन्य कारणों से ही सही श्वेताम्बर श्रागमों का सपरिवार बहिष्कार करना था जब कि स्थानक - वासी परंपरा को आगमों का श्रात्यन्तिक बहिष्कार इष्ट न था; उसको वे ही आगम सर्वथा प्रमाण इष्ट नहीं हैं जिनमें मूर्ति का संकेत स्पष्ट हो । इसलिए स्थानकवासी संप्रदाय के सामने श्रागमगत खाद्याखाद्य विषयक सूत्र के अर्थ बदलने का एक ही मार्ग खुला था जिसको उसने अपनाया भी। इस तरह हम सारे इतिहास काल में देखते हैं कि हिंसा की व्याख्या और उसकी प्रतिष्ठा व प्रचार में तथा वर्तमान जीवन धोरण में दिगंबर एवं स्थानकवासी फिरके से किसी भी तरह नहीं ऊतरते हुए भी श्वेताम्बर संप्रदाय के व्याख्याकारों ने खाद्याखाद्य विषयक सूत्रों का मांस-मत्स्यपरक पुराना अर्थ अपनाए रखने में अपना गौरव ही समझा । भले ही ऐसा करने में उनको जैनेतर समाज की तरफ से तथा समानफीरकों की तरफ से हजार-हजार आप सुनने व सहने पड़े ।
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