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जैन धर्म और दर्शन का समर्थन करनेवाली स्थविरवादी परम्परा के अलावा कुछ महायानी ग्रन्थकार भी ऐसे थे जो माँस-ग्रहण का समर्थन करते थे । शान्तिदेव ने अपने समय तक के प्रायः सभी पक्ष-विपक्ष के शास्त्रों को देखकर उनका आपसी विरोध दूर करने का तथा अपना स्पष्ट अभिप्राय प्रगट करने का प्रयत्न किया है। शान्तिदेव का सुझाव तो लंकावतार सूत्रकार की तरह माँसनिषेध की ओर ही है, फिर भी लंकावतार सूत्रकार की अपेक्षा उनके सामने विपक्ष का साहित्य और विपक्ष की दलीलें बहुत अधिक थीं जिन सबको वे टाल नहीं सकते थे । इसलिए लंकावतार सूत्र के आधार पर माँसनिषेध का समर्थन करते हुए भी शान्तिदेव ने कुछ ऐसे अपवाद-स्थान बतलाए हैं जिनमें भिक्षु माँस भी ले सकता है। उन्होंने कहा है कि अगर कोई ऐसा समर्थ भिक्षु हो कि जिसकी मृत्यु से समाधि-मार्ग का लोप हो जाता हो और
औषध के तौर पर माँस ग्रहण करने से उसका बच जाना संभव हो तो ऐसे भिक्षु के लिये माँस भी भैषज्य के तौर पर कल्प्य है।
- यद्यपि शान्तिदेव ने बुद्ध का नाम लेकर भैषज्य के तौर पर माँसग्रहण करने की बात नहीं कही है फिर भी जान पड़ता है कि जो माँस-ग्रहण के पक्षपाती बुद्ध के द्वारा लिये गए सूकर माँस की बात आगे करके अपने पक्ष का समर्थन करते थे उन्हीं को यह जवाब दिया गया है । शान्तिदेव ने विनय-पिटक में विहित त्रिकोटिशुद्ध माँस और सहज मृत्यु से मृत प्राणी के माँससूचक अनेक सूत्रों का तात्पर्य माँस-निषेध की दृष्टि से बतलाया है । शान्तिदेव का प्रयत्न माँसनिषेधगामी होने पर भी अपवादसहिष्णु है। ___ बुद्धघोष, लंकावतारकार और शान्तिदेव के बीच हुए हैं। और वे स्थविरवादी भी हैं । इसलिए उन्होंने पालि-पिटकों की तथा विनय की प्राचीन परम्परा को सुरक्षित रखने का भरसक प्रयत्न किया है। इस संक्षिप्त विवरण से पाठक समझ सकेंगे कि माँस के ग्रहण और अग्रहण के विषय में बौद्ध परम्परा में कैसा ऊहापोह शरू हुआ था। वैदिक शास्त्रों में हिंसा-अहिंसा दृष्टि से अर्थभेद का इतिहास
सुविदित है कि वैदिक-परम्परा माँस-मत्स्यादि को अखाद्य मानने में उतनी सख्त नहीं है जितनी कि बौद्ध और जैन परम्परा । वैदिक यज्ञ-यागों में पशुवध को धर्म्य माने जाने का विधान आज भी शास्त्रों में है ही। इतना ही नहीं बल्कि भारत-व्यापी वैदिक परम्परा के अनुयायी कहलाने वाले अनेक जाति-दल ऐसे हैं
जो ब्राह्मण होते हुए भी माँस-मत्स्यादि को अन्न की तरह खाद्य रूप से व्यवहृत - करते हैं और धार्मिक क्रियात्रों में तो उसे धर्म्य रूप से स्थापित भी करते हैं।
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