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'षडशीतिक
२५६ आदि व्याख्याएँ नवीन की अपेक्षा अधिक हैं । हाँ, नवीन पर, जैसे गुजराती टबे हैं, वैसे प्राचीन पर नहीं हैं।
इस संबंध की विशेष जानकारी के लिए अर्थात् प्राचीन और नवीन पर कौन-कौन सी व्याख्या किस-किस भाषा में और किस किसकी बनाई हुई है, इत्यादि जानने के लिए पहले कर्मग्रंथ के प्रारम्भ में जो कर्मविषयक साहित्य की तालिका दी है, उसे देख लेना चाहिए । चौथा कर्मग्रन्थ और आगम, पंचसंग्रह तथा गोम्मटसार ___ यद्यपि चौथे कर्मग्रंथ का कोई-कोई ( जैसे गुणस्थान यादि ) विषय वैदिक तथा बौद्ध साहित्य में नामांतर तथा प्रकारांतर से वर्णन किया हुआ मिलता है, तथापि उसकी समान कोटि का कोई खास ग्रंथ उक्त दोनों सम्प्रदायों के साहित्य में दृष्टिगोचर नहीं हुआ।
जैन-साहित्य श्वेताम्बर और दिगम्बर, दो सम्प्रदायों में विभक्त है। श्वेताम्बरसम्प्रदाय के साहित्य में विशिष्ट विद्वानों की कृति स्वरूप 'अागम' और 'पञ्चसंग्रह' ये प्राचीन ग्रंथ ऐसे हैं, जिनमें कि चौथे कर्मग्रंथ का सम्पूर्ण विषय पाया जाता है, या यों कहिए कि जिनके आधार पर चौथे कर्मग्रंथ की रचना ही की गई है।
यद्यपि चौथे कर्मग्रंथ में और जितने विषय जिस क्रम से वर्णित हैं, वे सब उसी क्रम से किसी एक पागम तथा पञ्चसंग्रह के किसी एक भाग में वर्णित नहीं हैं, तथापि भिन्न-भिन्न अागम और पञ्चसंग्रह के भिन्न-भिन्न भाग में उसके सभी विषय लगभग मिल जाते हैं । चौथे कर्मग्रंथ का कौन सा विषय किस आगम में और पञ्चसंग्रह के किस भाग में आता है, इसकी सूचना प्रस्तुत अनुवाद में उसउस विषय के प्रसंग में टिप्पणी के तौर पर यथासंभव कर दी गई है, जिससे कि प्रस्तुत ग्रंथ के अभ्यासियों को आगम और पञ्चसंग्रह के कुछ उपयुक्त स्थल मालम हों तथा मतभेद और विशेषताएँ ज्ञात हो ।
प्रस्तुत ग्रंथ के अभ्यासियों के लिए पागम और पञ्चसंग्रह का परिचय करना लाभदायक है; क्योंकि उन ग्रंथों के गौरव का कारण सिर्फ उनकी प्राचीनता ही नहीं है, बल्कि उनकी विषय-गम्भीरता तथा विषयस्फुटता भी उनके गौरव का कारण है।
'गोम्मटसार' यह दिगम्बर सम्प्रदाय का कर्म-विषयक एक प्रतिष्ठित ग्रंथ है, जो कि इस समय उपलब्ध है। यद्यपि वह श्वेताम्बरीय आगम तथा पञ्चसंग्रह की अपेक्षा बहुत अर्वाचीन है, फिर भी उसमें विषय-वर्णन, विषय-विभाग और प्रत्येक विषय के लक्षण बहुत स्फुट हैं। गोम्मटसार के 'जीवकाण्ड' और 'कर्मकाण्ड'- ये मुख्य दो विभाग हैं। चौथे कर्मग्रंथ का विषय जीवकाण्ड में ही
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