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जैन धर्म और दर्शन याइं, इच्छामि खमासमणो उव्वठियोमि तुब्भण्हं, इच्छामि खमासमणो कयाई च मे, पुव्वामेव मिच्छत्तानो पडिक्कम्मइ कित्तिकम्मा-इतने सूत्र मौलिक जान पड़ते हैं।
तथा इनके अलावा 'तत्थ समणोवासो, थूलगपाणाइवायं समणोवासो पञ्चक्खाइ, थूलगमुसावायं,' इत्यादि जो सूत्र श्रावक-धर्म-संबन्धी अर्थात् सम्यक्त्व, बारह व्रत और संलेखनाविषयक हैं तथा जिनके आधार पर 'वंदित्तु' की पद्य-बन्ध रचना हुई है, वे सूत्र भी मौलिक जान पड़ते हैं । यद्यपि इन सूत्रों के पहले टीकाकार ने 'सूत्रकार आह, सत्र' इत्यादि शब्दों का उल्लेख नहीं किया है तथापि 'प्रत्याख्यान-आवश्यक' में नियुक्तिकार ने प्रत्याख्यान का सामान्य स्वरूप दिखाते समय अभिग्रह की विविधता के कारण श्रावक के अनेक मेद बतलाए हैं। जिससे जान पड़ता है। श्रावक-धर्म के उक्त सत्रों को लक्ष्य में रखकर ही नियुक्तिकार ने श्रावक-धर्म की विविधता का वर्णन किया है ।
आजकल की सामाचारी में जो प्रतिक्रमण की स्थापना की जाती है, वहाँ से लेकर 'नमोऽस्तु वर्धमानाय' की स्तुति पर्यन्त में ही छह 'आवश्यक' पूर्ण हो जाते हैं । अतएव यह तो स्पष्ट ही है कि प्रतिक्रमण की स्थापना के पूर्व किए जानेवाले चैत्य-वन्दन का भाग और 'नमोऽस्तु वर्धमानाय' की स्तुति के बाद पढ़े जाने वाले सज्झाय, स्तवन, शान्ति आदि, ये सब छह 'आवश्यक' के बहिर्भूत हैं । अतएव उनका मूल 'श्रावश्यक' में न पाया जाना स्वाभाविक ही है । भाषा दृष्टि से देखा जाय तो भी यह प्रमाणित है कि अप्रभ्रंश, संस्कृत, हिन्दी व गुजराती भाषा के गद्य-पद्य मौलिक हो ही नहीं सकते; क्योंकि सम्पूर्ण मूल 'श्रावश्यक' प्राकृत-भाषा में ही है । प्राकृत-भाषा-मय गद्य-पद्य में से जितने सूत्र उक्त दो उपायों के अनुसार मौलिक बतलाए गए हैं, उनके अलावा अन्य सूत्र को मूल 'श्रावश्यक'-गत मानने का प्रमाण अभी तक हमारे ध्यान में नहीं आया है । अतएव यह समझना चाहिए कि छह 'अावश्यकों' में 'सात लाख, अठारह पापस्थान, पायरिय-उवज्झाए, वेयावच्चगराणं, पुक्खरवरदीवड्ढे, सिद्धाणं बुद्धाणं, सुत्रदेवया भगवई आदि थुई और 'नमोऽस्तु वर्धमानाय' आदि जो-जो पाठ बोले जाते हैं, वे सब मौलिक नहीं हैं । यद्यपि 'आयरियउवझ्झाए, पुक्खखरदीवड्ढे, सिद्धाणं बुद्धाणं' ये मौलिक नहीं हैं तथापि वे प्राचीन हैं; क्योंकि उनका उल्लेख करके श्री हरिभद्र सूरि ने स्वयं उनकी व्याख्या की है।
प्रस्तुत परीक्षण-विधि का यह मतलब नहीं है कि जो सूत्र मौलिक नहीं है, उसका महत्त्व कम है । यहाँ तो सिर्फ इतना ही दिखाना है कि देश, काल और
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