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वैदिक सन्ध्या के मन्त्र व वाक्य
(१) “ममोपात्तदुरितक्षयाय श्रीपरमेश्वरप्रीतये प्रातः सन्ध्योपासनमहं करिष्ये ।” - संकल्प-वाक्य |
आवश्यक क्रिया
जैन
( २ ) ॐ सूर्यश्व मा मनुश्च मन्युपतयश्च मन्युकृतेभ्यः पापेभ्यो रक्षन्ताम् । यद् रात्र्या पापमकार्ष मनसा वाचा हस्ताभ्यां पद्भ्यामुदरेण शिश्ना रात्रिस्तदवलुम्पतु यत् किंचिद दुरितं मयीदमहममृतयोनौ सूर्ये ज्योतिषि जुहोमि स्वाहा ।
- कृष्ण यजुर्वेद । (३) ॐ तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमही धियो यो नः प्रचोदयेत् । - गायत्री ।
(१) पायच्छित्त विसोहणत्थं करेमि काउस्सग्गं । (२) जं जं मणेरा बद्धं, जं जं वाएग भासियं पावं ।
जं जं कारण कयं, मिच्छामि दुक्कडं तस्स || (३) चन्देसु निम्मलयरा, इच्चेसु हियं पयासयरा । सागरवर गम्भीरा, सिद्धा सिद्धिं मम दिसन्तु ॥
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पारसी लोग नित्यप्रार्थना तथा नित्यपाठ में अपनी असली धार्मिक किताब "वस्ता' का जो-जो भाग काम में लाते हैं, वह 'खोरदेह
वस्ता' के नाम से प्रसिद्ध है । उसका मजमून अनेक अंशों में जैन, बौद्ध तथा वैदिक संप्रदाय में प्रचलित सन्ध्या के समान है । उदाहरण के तौर पर उसका थोड़ा सा अंश हिंदी भाषा में नीचे दिया जाता है ।
अवस्ता के मूल वाक्य इसलिए नहीं उद्धृत किए हैं कि उसके खास अक्षर ऐसे हैं, जो देवनागरी लिपि में नहीं हैं । विशेष जिज्ञासु मूल पुस्तक से असली पाठ देख सकते हैं ।
(१) दुश्मन पर जीत हो ।
—खोरदेह अवस्ता, पृ० ७ ।
(२) मैंने मन से जो बुरे विचार किये, जबान से जो तुच्छ भाषण किया और शरीर से जो हलका काम किया; इत्यादि प्रकार से जो-जो गुनाह किये, उन सब के लिए मैं पश्चात्ताप करता हूँ ।
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- खो० अ०, पृ० ७ ।
(३) वर्तमान और भावी सब धर्मों में सब से बड़ा, सब से अच्छा और
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