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जैन धर्म और दर्शन नाथ का स्थान है । उनकी जीवनी कह रही है कि उन्होंने अहिंसा की भावना को विकसित करने के लिए एक दूसरा ही कदम उठाया । पञ्चाग्नि जैसी तामस तपस्याओं में सूक्ष्म-स्थूल प्राणियों का विचार बिना किए ही आग जलाने की प्रथा थी जिससे कभी-कभी इंधन के साथ अन्य प्राणी भी जल जाते थे । काशीराज अश्वपति के पुत्र पार्श्वनाथ ने ऐसी हिंसाजनक तपस्या का घोर विरोध किया
और धर्म-क्षेत्र में अविवेक से होने वाली हिंसा के त्याग की ओर लोकमत तैयार किया । पार्श्वनाथ के द्वारा पुष्ट की गई अहिंसा की भावना निग्रन्थनाथ ज्ञातपुत्र महावीर को विरासत में मिली। उन्होंने यज्ञ यागादि जैसे धर्म के जुदे-जुदे क्षेत्रों में होने वाली हिंसा का तथागत बुद्ध की तरह प्रात्यन्तिक विरोध किया और धर्मके प्रदेश में अहिंसा की इतनी अधिक प्रतिष्ठा की कि इसके बाद तो अहिंसा ही भारतीय धर्मों का प्राण बन गई। भगवान् महावीर की उग्र अहिंसा परायण जीवन यात्रा तथा एकाग्र तपस्या ने तत्कालीन अनेक प्रभावशाली ब्राह्मण व क्षत्रियों को अहिंसा-भावना की ओर खींचा। फलतः जनता में सामाजिक तथा धार्मिक उत्सवों में अहिंसा की भावना ने जड़ जमाई, जिसके ऊपर आगे की निर्ग्रन्थ-परंपरा की अगली पीढ़ियों की कारगुजारी का महल खड़ा हुआ है। अशोक के पौत्र संप्रति ने अपने पितामह के अहिंसक संस्कार की विरासत को आयसुहस्ति की छत्रछाया में और भी समृद्ध किया। संप्रति ने केवल अपने अधीन राज्य-प्रदेशों में ही नहीं बल्कि अपने राज्य की सीमा के बाहर -जहाँ अहिंसामूलक जीवन-व्यवहार का नाम भी न था-अहिंसा भावना का फैलाव किया । अहिंसा-भावना के उस स्रोत की बाढ़ में अनेक का हाथ अवश्य है पर निग्रन्थ अनगारों का तो इसके सियाय और कोई ध्येय ही नहीं रहा है। वे भारत में पूर्व-पश्चिम, उत्तर-दक्षिण जहाँ-जहाँ गए वहाँ उन्होंने अहिंसा की भावना का ही विस्तार किया और हिंसामूलक अनेक व्यसनों के त्याग की जनता को शिक्षा देने में ही निर्ग्रन्थ-धर्म की कृतकृत्यता का अनुभव किया । जैसे शंकराचार्य ने भारत के चारों कोनों पर मठ स्थापित करके ब्रह्माद्वैत का विजय स्तम्भ रोपा है वैसे ही महावीर के अनुयायी अनगार निर्ग्रन्थों ने भारत जैसे विशाल देश के चारों कोनों में अहिंसाद्वैत की भावना के विजय-स्तम्भ रोप दिए हैं—ऐसा कहा जाए तो अत्युक्ति न होगी। लोकमान्य तिलक ने इस बात को यों कहा था कि गुजरात की अहिंसा भावना जैनों की ही देन है पर इतिहास हमें कहता है कि वैष्णवादि अनेक वैदिक परम्पराओं को अहिंसामूलक धर्मवृत्ति में निग्रन्थ संप्रदाय का थोड़ा बहुत प्रभाव अवश्य काम कर रहा है। उन वैदिक सम्प्रदायों के प्रत्येक जीवन न्यवहार की छानबीन करने से कोई भी विचारक यह सरलता से जान सकता है
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