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भगवान् पार्श्वनाथ की विरासत
१५ दोषों की आलोचनापूर्वक आयंदा दोषों से बचने के लिए शुद्ध संकल्प को दृढ़ करे । महावीर की जीवनचर्या और उनके उपदेशों से यह भली-भाँति जान पड़ता है कि, उन्होंने स्वीकृत प्रतिज्ञा की शुद्धि और अन्तर्जागृति पर जितना भार दिया है उतना अन्य चीजों पर नहीं। यही कारण है कि तत्कालीन अनेक पार्धापत्यिकों के रहते हुए भी उन्हीं में से एक ज्ञातपुत्र महावीर ही निग्रंथ संघ के अगुवा रूप से या तीर्थंकर रूप से माने जाने लगे। महावीर के उपदेशों में जितना भार कषायविजय पर है-जो कि निम्रन्थ-जीवन का मुख्य साध्य है-उतना भार अन्य किसी विषय पर नहीं है। उनके इस कठोर प्रयत्न के कारण ही चार याम का नाम स्मृतिशेष बन गया व पाँच महाव्रत संयमधर्म के जीवित अंग बने । ___ महावीर के द्वारा पंच महाव्रत-धर्म के नए सुधार के बारे में तो श्वेताम्बरदिगम्बर एकमत हैं, पर पाँच महाव्रत से क्या अभिप्रेत है, इस बारे में विचारभेद अवश्य है। दिगंबराचार्य वटकेर का एक 'मूलाचार' नामक ग्रन्थ है-जो संग्रहात्मक है-उसमें उन्होंने पाँच महाव्रत का अर्थ पाँच यम न बतलाकर केवल जैन-परंपरा परिचित पाँच चारित्र बतलाया है। उनका कहना है कि, महावीर के पहले मात्र सामायिक चारित्र था, पर महावीर ने छेदोपस्थापन दाखिल करके सामायिक के ही विस्तार रूप से अन्य चार चारित्र बतलाए, जिससे महावीर पंच महाव्रत-धर्म के उपदेशक माने जाते हैं। प्राचार्य वटकेर की तरह पूज्यपाद, अकलंक, आशाधर आदि लगभग सभी दिगंबराचार्य और दिगंबर विद्वानों का वह एक ही अभिप्राय है२४ । निःसन्देह श्वेतांबर-परंपरा के पंच महाव्रतधर्म के खुलासे से दिगंबर परंपरा का तत्संबन्धी खुलासा जुदा पड़ता है । भद्रबाहुकर्तृक मानी जानेवाली नियुक्ति में भी छेदोपस्थापना चारित्र को दाखिल करके पाँच चारित्र महावीरशासन में प्रचलित किए जाने की कथा निर्दिष्ट है, पर यह कथा केवल चारित्रपरिणाम की तीव्रता, तीव्रतरता और तीव्रतमता के तारतम्य पर एवं भिन्न-भिन्न दीक्षित व्यक्ति के अधिकार पर प्रकाश डालती है, न कि समग्र निग्रंथों के लिए अवश्य स्वीकार्य पंच महाव्रतों के ऊपर। जब कि महावीर का पंच महाव्रत-धर्म-विषयक सुधार निग्रंथ दीक्षा लेनेवाले सभी के लिए एक-सा रहा, ऐसा भगवती आदि ग्रंथों से तथा बौद्ध पिटक निर्दिष्ट 'चातुयाम-संवर-संवुतो'२५ इस विशेषण से फलित होता है। इसके समर्थन में प्रतिक्रमण धर्म का उदाहरण पर्याप्त है । महावीर ने प्रतिक्रमण धर्म भी सभी निर्ग्रन्थों २४. देखो-पं० जुगल किशोर जी मुख्तार कृत-जैनाचार्यों का शासनभेद,
परिशिष्ट 'क'। २५. "चातु-याम-संवर-संवुतो" इस विशेषण के बाद 'सव्व-वारि-वारितो' इत्यादि
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