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जैन धर्म और दर्शन
के लिए समान रूप से अनुशासित किया । इस प्रकाश में पंच महाव्रत धर्म का अनुशासन भी सभी निर्ग्रन्थों के लिये रहा हो, यही मानना पड़ता है । मूलाचार आदि दिगंबर परंपरा में जो विचारभेद सुरक्षित है वह साधार अवश्य है, क्योंकि, श्वेतांबरीय सभी ग्रन्थ छेदोपस्थान सहित पाँच चारित्र का प्रवेश महावीर के शासन में बतलाते हैं। पाँच महाव्रत और पाँच चारित्र ये एक नहीं । दोनों में पाँच की संख्या समान होने से मूलाचार आदि ग्रन्थों में एक विचार सुरक्षित रहा तो श्वेताम्बर ग्रन्थों में दूसरा भी विचार सुरक्षित है । कुछ भी हो, दोनों परंपराएँ पंच महाव्रत धर्म के सुधार के बारे में एक-सी सम्मत हैं ।
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वस्तुतः पाँच महाव्रत यह पार्श्वपत्यिक चातुर्याम का स्पष्टीकरण ही है । इससे यह कहने में कोई बाधा नहीं कि, महावीर को संयम या चारित्र की विरासत भी पार्श्वनाथ की परंपरा से मिली है ।
हम योगपरंपरा के आठ योगांग से परिचित हैं । उनमें से प्रथम अंग यम है | पातंजल योगशास्त्र ( २ - ३०, ३१ में हिंसा, सत्य, अस्तेय ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह ये पाँच यम गिनाए हैं; साथ ही इन्हीं पाँच यमों को महाव्रत भी कहा है - जब कि वे पाँच यम परिपूर्ण या जाति- देश - काल - समयानवच्छिन्न हों । मेरा खयाल है कि, महावीर के द्वारा पाँच यमों पर अत्यन्त भार देने एवं उनको महाव्रत के रूप से मान लेने के कारण ही 'महाव्रत' शब्द पाँच यमों के लिए विशेष प्रसिद्धि में आया । आज तो यम या याम शब्द पुराने जैनश्रुत में, बौद्ध पिटकों में और उपलब्ध योगसूत्र में मुख्यतया सुरक्षित है । 'यम' शब्द का उतना प्रचार नहीं है, जितना प्रचार 'महाव्रत' शब्द का ।
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विशेषण ज्ञातपुत्र महावीर के लिए आते हैं । इनमें से 'सव्व-वारि-वारितो' का अर्थ कथा के अनुसार श्री राहुल जी आदि ने किया है कि – “निगण्ठ (निर्ग्रन्थ ) जल के व्यवहार का वारण करता है ( जिससे जल के जीव न मारे जाएँ ) । " ( दीघनिकाय, हिन्दी अनुवाद, पृ० २१ ) पर यह अर्थ भ्रमपूर्ण है । जलबोधक "वारि" शब्द होने से तथा निर्ग्रन्थ सचित्त जल का उपयोग नहीं करते, इस वस्तुस्थिति के दर्शन से भ्रम हुआ जान पड़ता है । वस्तुतः "सव्व-वारि-वारितों' का अर्थ यही है कि सब अर्थात् हिंसा आदि चारों पापकर्म के वारि अर्थात् वारस्य याने निषेध के कारण वारित अर्थात् विरत; याने हिंसा आदि सब पापकर्मों के निवारण के कारण उन दोषों से विरत । यही अर्थ अगले 'सव्व-वारि-युतो', 'सव्व-वारि-धुतो' इत्यादि विशेषण में स्पष्ट किया गया है । वस्तुतः सभी विशेषण एक ही अर्थ को भिन्न-भिन्न भंगी से दरसाते हैं ।
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