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जैन धर्म और दर्शन परम्परा में ही दीक्षित हुए-फिर भले ही वे एक विशिष्ट नेता बने। महावीर तत्कालीन पार्धापत्यिक परंपरा में ही हुए, इसी कारण से उनको पार्श्वनाथ के परंपरागत संघ, पार्श्वनाथ के परंपरागत आचार-विचार तथा पार्श्वनाथ का परम्परागत श्रुत विरासत में मिले, जिसका समर्थन नीचे लिखे प्रमाणों से होता है। संघ
भगवती १-६-७६ में कालासवेसी नामक पाश्र्वापत्यिक का वर्णन है, जिसमें कहा गया है कि, वह किन्हीं स्थविरों से मिला और उसने सामायिक, संयम, प्रत्याख्यान, कायोत्सर्ग, विवेक आदि चरित्र संबन्धी मुद्दों पर प्रश्न किए । स्थविरों ने उन प्रश्नों का जो जवाब दिया, जिस परिभाषा में दिया, और कालासवेसी ने जो प्रश्न जिस परिभाषा में किए हैं, इस पर विचार करें तो हम निश्चित रूप से कह सकते हैं कि, वे प्रश्न और परिभाषाएँ सब जैन परिभाषा से ही सम्बद्ध हैं । थेरों के उत्तर से कालासवेसी का समाधान होता है तब वह महावीर के द्वारा नवसशोधित पंचमहाव्रत और प्रतिक्रमणधर्म को स्वीकार करता है। अर्थात् वह महावीर के संघ का एक सभ्य बनता है। ___ भगवती ५-६-२२६ में कतिपय थेरों का वर्णन है । वे राजगृही में महावीर के पास मर्यादा के साथ जाते हैं, उनसे इस परिमित लोक में अनन्त रात-दिन और परिमित खस-दिन के बारे में प्रश्न पूछते हैं। महावीर पार्श्वनाथ का हवाला देते हुए जवाब देते हैं कि, पुरिसादाणीय पार्श्व ने लोक का स्वरूप परिमित ही कहा है। फिर वे अपेक्षाभेद से रात-दिन की अनन्त और परिमित संख्या का खुलासा करते हैं। खुलासा सुनकर थेरों को महावीर की सर्वज्ञता के विषय में प्रतीति होती है, तब वे वन्दन-नमस्कारपूर्वक उनका शिष्यत्व स्वीकार करते हैं, अर्थात् पंच महाव्रतों और सप्रतिक्रमणधर्म के अंगीकार द्वारा महावीर के संघ के अंग बनते हैं। __ भगवती ६-३२-३७८, ३७६ में गांगेय नामक पार्खापत्यिक का वर्णन है । वह वाणिज्यग्राम में महावीर के पास जाकर उनसे जीवों की उत्पत्ति-च्युति आदि के बारे में प्रश्न करता है। महावीर जवाब देते हुए प्रथम ही कहते हैं कि, पुरिसादाणीय पार्श्व ने लोक का स्वरूप शाश्वत कहा है । इसी से मैं उत्पत्ति-च्युति आदि का खुलासा अमुक प्रकार से करता हूँ। गांगेय पुनः प्रश्न करता है कि, आप जो कहते हैं वह किसी से सुनकर या स्वयं जानकर ? महावीर के मुख से यहाँ कहलाया गया है कि, मैं केवली हूँ, स्वयं ही जानता हूँ। गांगेय को सर्वज्ञता की प्रतीति हुई, फिर वह चातुर्यामिक धर्म से पंचमहाव्रत स्वीकारने की अपनी
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