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इन्द्रिय विचार
इन्द्रियनिरूपण प्रसङ्गमें मुख्यतया नीचे लिखी बातोंपर दर्शनशास्त्रों में विचार पाया जाता है
इन्द्रिय पदकी निरुक्ति, इन्द्रियोंका कारण, उनकी संख्या, उनके विषय, उनके श्राकार, उनका पारस्परिक भेदाभेद, उनके प्रकार तथा द्रव्य - गुणग्राहित्व - विवेक इत्यादि ।
अभीतक जो कुछ देखने में आया उससे ज्ञात होता है कि इन्द्रियपदकी निरुक्ति जो सबसे पुरानी लिपिबद्ध है वह पाणिनिके सूत्र' में ही है । यद्यपि इस निरुक्तिवाले पाणिनीय सूत्रके ऊपर कोई भाष्यांश पतञ्जलिके उपलब्ध महाभाष्य - में दृष्टिगोचर नहीं होता तथापि सम्भव है पाणिनीय सूत्रोंकी अन्य कोई प्राचीन व्याख्या या व्याख्यानोंमें उस सूत्रपर कुछ व्याख्या लिखी गई हो । जो कुछ हो पर यह स्पष्ट जान पड़ता है कि प्राचीन बौद्ध और जैन दार्शनिक ग्रन्थोंमें पाई जानेवाली पाणिनीय सूत्रोक्त इन्द्रियपदकी निरुक्ति किसी न किसी प्रकार से पाणिनीय व्याकरणकी परम्परा के अभ्यास मेंसे ही उक्त बौद्ध-जैन ग्रन्थों में दाखिल हुई है । विशुद्धिमाग े जैसे प्रतिष्ठित बौद्ध और तत्त्वार्थ
१. 'इन्द्रियमिन्द्रलिंग मिन्द्रदृष्ट मिन्द्र सृष्टमिन्द्र जुष्टमिन्द्रदत्तमितिवा । ' - ५.२.६३ । २. ' को पन नेसं इन्द्रियको नामाति ? इन्दलिंगो इन्द्रियहो; इन्ददेसित डो इन्द्रियट्ठो; इन्ददिट्ठट्ठो इन्द्रियहो; इन्दसि हो इन्द्रियहो; इन्दजुहट्ठो इन्द्रियहो; सो सब्बोपि इध यथायोगं युज्जति । भगवा हि सभ्मासबुद्धो पर मिस्स रियभावतो इन्दो, कुसलाकुसलं च कम्मं कम्मेसु कस्यचि इस्सरियाभावतो । तेनेवेत्थ कम्मसञ्जनितानि ताव इन्द्रियानि कुसलाकुसलकम्मं उल्लिगेन्ति । तेन च सिहानीति इन्दलिङ्गट्ठेन इन्दसिडहेन च इन्द्रियानि । सब्बानेव पनेतानि भगवता यथा भूततो पकासितानि श्रभिसम्बुद्धानि चाति इन्ददेसितट्ठेन इन्ददिट्ठट्ठेन च इन्द्रियानि । तेनेव भगवता मुनीन्देन कानिचि गोचरासेवनाय, कानिचि भाषनासेवनाय सेवितानीति इन्दजु ठेट्ठेनापि इन्द्रियानि । अपि च श्रधिपश्चसंखातेन इस्सरियट्ठेनापि एतानि इन्द्रियानि । चक्खुविज्ञाणादिष्पवत्तियं हि श्वक्खादीनं सिद्धं श्राधिपच्चं, तस्मिं तिक्खे तिक्खता, मन्दे मन्दत्ता ति । श्रयं तावेत्थ स्थतो विनिच्छयो ।' -बिसुद्धि० पृ० ४६१ |
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