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[१.१.३० - ३] प्रमाण के विषयरूपसे समस्त विश्वका जैन दर्शनसम्मत सिद्धांत, उसकी कसौटी और उस कसौटीका अपने ही पक्ष में सम्भव यह सब बतलाया है । वस्तुका स्वरूप द्रव्य - पर्यायात्मकत्व, नित्यानित्यत्व या सदसदात्मकत्वादिरूप जो श्रागमोंमें विशेष युक्ति, हेतु या कसौटीके सिवाय वर्णित पाया जाता है ( भग० श० १. उ० ३; श० ६. उ० ३३ ) उसीको प्रा० हेमचंद्रने बतलाया है, पर तर्क
र हेतुपूर्वक । तर्कयुगमें वस्तुस्वरूपकी निश्चायक जो विविध कसौटियाँ मानी जाती थीं जैसे कि न्यायसम्मत - सत्तायोगरूप सत्त्व, सांख्यसम्मत प्रमाणविषयत्वरूप सत्त्व तथा बौद्धसम्मत अर्थक्रियाकारित्वरूप सत्व इत्यादि — उनमें से अन्तिम अर्थात् अर्थक्रियाकारित्वको ही श्रा • हेमचंद्र कसौटी रूपसे स्वीकार करते हैं जो सम्भवतः पहिले पहल बौद्ध तार्किकोंके द्वारा ( प्रमाणवा० ३. ३ ) ही उद्भावित हुई जान पड़ती है । जिस अर्थक्रियाकारिवकी कसौटीको लागू करके बौद्ध तार्किकोंने वस्तुमात्रमें स्वाभिमत क्षणिकत्व सिद्ध किया है और जिस कसौटीके द्वारा ही उन्होंने केवल नित्यवाद ( तत्त्वसं० का० ३९४ से ) और जैन सम्मत नित्यानित्यात्मक वादादिका ( तत्त्वसं ० का ० १७३८ से ) विकट तर्क जालसे खण्डन किया है, आ० हेमचंद्रने उसी कसौटीको अपने पक्ष में लागू करके जैन सम्मत नित्यानित्यात्मकत्व अर्थात् द्रव्यपर्यायात्मकत्ववादका सयुक्तिक समर्थन किया है और वेदांत श्रादिके केवल निष्यवाद तथा बौद्धोंके केवल अनित्यस्ववादका उसी कसौटीके द्वारा प्रबल खण्डन भी किया है । ई० १६३६ ]
[ प्रमाण मीमांसा
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