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अपनाया और उन्होंने दिङ्नागकी तरह ही न्याय आदि शास्त्र सम्मत वैदिक परम्परा के अनुमान लक्षण, प्रकार आदिका खण्डन किया? जो कि कभी प्रसिद्ध पूर्ववर्ती बौद्ध तार्किकोंने खुद ही स्वीकृत किया था । अबसे वैदिक और बौद्ध तार्किकोंके बीच खण्डन - मण्डनकी खास आमने-सामने छावनियाँ बन गई । वात्स्यायन भाष्यके टीका नुटीकाकार उद्योतकर, वाचस्पति मिश्र श्रादिने वसुबन्धु, दिङ्नाग, धर्मकीर्ति श्रादि बौद्ध तार्किकोंके अनुमानलक्षणप्रणयन श्रादिका जोरशोरसे खण्डन किया जिसका उत्तर क्रमिक बौद्ध तार्किक देते गए हैं ।
बौद्धयुगका प्रभाव जैन परम्परा पर भी पड़ा । बौद्धतार्किक के द्वारा वैदिक परम्परासम्भत श्रनुमान लक्षण, भेद आदिका खण्डन होते और स्वतन्त्रभाव से लक्षणप्रणयन होते देखकर सिद्धसेन जैसे जैन तार्किकोंने भी स्वतन्त्र भावसे अपनी दृष्टिके अनुसार अनुमानका लक्षणप्रणयन किया । भट्टारक कलङ्कने उस सिद्धसेनीय लक्षणप्रणयन मात्र में ही सन्तोष न माना । पर साथ ही बौद्धतः किंकों की तरह वैदिक परम्परा सम्मत अनुमानके भेद प्रभेदोंके खण्डनका सूत्रपात भी स्पष्ट किया जिसे विद्यानन्द आदि उत्तरवर्ती दिगम्बरीय तार्किकोंने विस्तृत व पल्लवित किया ।
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नए बौद्ध युग के दो परिणाम स्पष्ट देखे जाते हैं । पहिला तो यह कि बौद्ध और जैन परम्परा में स्वतन्त्र भावसे अनुमान लक्षण श्रादिका प्रणयन और अपने ही पूर्वाचार्योंके द्वारा कभी स्वीकृत वैदिक परम्परा सम्मत अनुमानलक्षण विभाग श्रादिका खण्डन । दूसरा परिणाम यह है कि सभी वैदिक विद्वानोंके द्वारा बौद्ध सम्मत अनुमानप्रणालीका खण्डन व अपने पूर्वाचार्य सम्मत अनुमान प्रणालीका स्थापन | पर इस दूसरे परिणाममें चाहे गौण रूपसे ही सही एक बात यह भी उल्लेख योग्य दाखिल है कि भासर्वज्ञ जैसे वैदिक परम्परा के किसी
१ 'अनुमानं लिङ्गादर्थदर्शनम्'- - न्यायप्र० पृ० ७ । न्यायवि० २३ । तत्त्वसं ० का ० १३६२ ।
२ प्रमाणसमु० परि० २ । तत्त्वसं० का० १४४२ । तात्पर्य० पृ० १८० |
३ न्यायवा० पृ० ४६ | तात्पर्य० पृ० १८० ।
४ ' साध्याविनाभुनो लिङ्गात्साध्यनिश्चायकं स्मृतम् । अनुमानम् - न्याया० ५ ।
५ न्यायवि० २. १७१, १७२ ।
६ तत्त्वार्थश्लो० पृ० २०५ | प्रमेयक० पृ० १०५ !
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