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न्याय दर्शन के प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान और श्रागम इन चारों प्रमाणोंके विशेष लक्षण ग्रन्थमें आए हैं और वे अक्षपादके न्यायसूत्रके हैं ।
सांख्य दर्शनके विशेष प्रमाणों में से केवल प्रत्यक्षका ही लक्षण लिया गया है, जो ईश्वर कृष्णका न होकर वार्षगण्यका है ।
२
बौद्ध दर्शन प्रत्यक्ष और अनुमान इन दो प्रमाणोंको ही मानता है । ३ ग्रन्थकारने उसके दोनों प्रमाणों के लक्षण चर्चाके वास्ते लिए हैं जो - जैसा कि हमने ऊपर कहा है — धर्मकीर्तिके हैं, पर जिनका मूल दिङ्नागके ग्रन्थ में भी मिलता है ।
मीमांसा दर्शनके प्रसिद्ध श्राचार्य दो हैं- कुमारिल और प्रभाकर । प्रभाकरको पाँच प्रमाण इष्ट हैं, पर कुमारिलको छह । प्रस्तुत ग्रन्थमें कुमारिलके छहों प्रमाणोंकी मीसांसाकी गई है, और इसमें प्रभाकर सम्मत पाँच प्रमाणोंकी मीमांसा भी समा जाती है ।
पौराणिक विद्वान मीमांसा सम्मत छह प्रमाणोंके अलावा ऐतिह्य और सम्भव नामक दो और प्रमाण मानते हैं - जिनका निर्देश अक्षपाद के सूत्रों तक भी है - वे भी प्रस्तुत ग्रन्थ में लिये गए हैं । ७
वैयाकरणो अभिमत 'वाचकपद' के लक्षण और 'साधुपद' की उनकी व्याख्याका भी इस ग्रन्थ में खण्डनीय रूपसे निर्देश मिलता है । यह सम्भवतः भर्तृहरिके वाक्यपदीयसे लिया गया है।"
( ३ ) यों तो ग्रन्थमें प्रसंगवश अनेक विचारोंकी चर्चा की गई है, जिनका यहाँपर सविस्तर वर्णन करना शक्य नहीं है, फिर भी उनमें से कुछ विचारोंवस्तुका निर्देश करना श्रावश्यक है, जिससे यह जानना सरल हो जाएगा, कि कौन - कौनसी वस्तुएँ, अमुक दर्शनको मान्य और अन्य दर्शनोंको अमान्य होनेके कारण, दार्शनिक क्षेत्र में खण्डन - मण्डनकी विषय बनी हुई हैं, और
१. देखो, ४० २७,५४,११२,११५ ।
२. पृ० ६१ ।
३. पृ० ३२, ८२ |
४. ५८, ८२ १०६, ११२, ११६ | ५. पृ० ११३ ।
६. न्यायसूत्र — २. २. १.
८. पृ० १२० ।
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७. पृ० १११ ।
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