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विक स्वरूपभेद ही है। दर्शनोंसे संबन्ध रखनेवाले सभी विषय प्रायः ऐसे ही हैं जिनमें कल्पनाओंके साम्राज्यका यथेष्ट अवकाश है, और जिनकी चर्चामें कुछ भी स्थापन न करना और केवल खण्डन ही खण्डन करना यह भी अाकर्षक बन जाता है । इस तरह हम देखते हैं कि दार्शनिक क्षेत्रके सिवाय अन्य किसी विषयमें वितण्डा कथाके विकास एवं प्रयोगकी कोई गुंजाइश नहीं है।
चर्चा करनेवाले विद्वानोंकी दृष्टिमें भी अनेक कारणोंसे परिवर्तन होता रहता है । जब विद्वानोंकी दृष्टिमें सांप्रदायिक भाव और पक्षाभिनिवेश मुख्यतया काम करते हैं तब उनके द्वारा वाद कथाका सम्भव कम हो जाता है। तिस पर भी, जब उनकी दृष्टि आभिमानिक अहंवृत्तिसे और शुष्क वाग्विलासकी कुतूहल वृत्तिसे श्रावृत हो जाती है, तब तो उनमें जल्प कथाका भी सम्भव विरल हो जाता है । मध्य युग और अर्वाचीन युगके अनेक ग्रन्थों में वितण्डा कथाका आश्रय लिए जानेका एक कारण उपर्युक्त दृष्टिभेद भी है ।
ब्राह्मण और उपनिषद् कालमें तथा बुद्ध और महावीरके समयमें चचोंोंकी भरमार कम न थी, पर उस समयके भारतवर्षीय वातावरणमें धार्मिकता, श्राध्यात्मिकता और चित्तशुद्धिका ऐसा और इतना प्रभाव अवश्य था कि जिससे उन चर्चाओंमें विजयेच्छाकी अपेक्षा सत्यज्ञानकी इच्छा ही विशेषरूपसे काम करती थी। यही सबब है कि हम उस युगके साहित्यमें अधिकतर वाद कथाका ही स्वरूप पाते हैं। इसके साथ हमें यह भी समझ लेना चाहिए कि उस युगके मनुष्य भी अन्तमें मनुष्य ही थे। अतएव उनमें भी विजयेच्छा, सांप्रदायिकता और अहंताका तत्त्व, अनिवार्य रूपसे थोड़ा बहुत काम करता ही था। जिससे कभी-कभी वाद कथामें भी जल्प और वितण्डाका तथा जल्प कथामें वितण्डाका जानते-अनजानते प्रवेश हो ही जाता था । इतना होते हुए भी, इस बातमें कोई संदेह नहीं, कि अंतिम रूपमें उस समय प्रतिष्ठा सत्यज्ञानेच्छाकी और वादकथाकी ही थी। जल और वितण्डा कथा करनेवालोंकी तथा किसी भी तरहसे उसका आश्रय लेनेवालोंको, उतनी प्रतिष्ठा नहीं थी जितनी शुद्ध वाद कथा करनेवालोंकी थी।
परंतु, अनेक ऐतिहासिक कारणोंसे, उपर्युक्त स्थितिमें बड़े जोरोंसे अंतर पड़ने लगा । बुद्ध और महावीरके बाद, भारतमें एक तरफसे शस्त्रविजयकी वृत्ति प्रबल होने लगी और दूसरी तरफसे उसके साथ-ही-साथ शास्त्रविजयकी वृत्ति भी उत्तरोत्तर प्रबल होती चली। सांप्रदायिक संघर्ष, जो पहले विद्यास्थान, धर्मस्थान और मठोंहीकी वस्तु थी, वह अब राज-सभा तक जा पहुँचा । इस सबबसे दार्शनिक विद्याओंके क्षेत्रमें जल्प और वितण्डाका प्रवेश अधिकाधिक
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